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वैश्या और साधु

एक साधु और एक वेश्या की एक साथ मृत्यु हुई, एक ही दिन। आमने-सामने घर था। मृत्यु के दूत लेने आए, तो दूत बड़ी मुश्किल में पड़ गए। उन्हें फिर जाकर मुख्यालय में पता लगाना पड़ा कि मामला क्या है! क्योंकि संदेश में कुछ भूल मालूम पड़ती है। साधु को ले जाने की आज्ञा हुई है नर्क, और वेश्या को आज्ञा हुई है स्वर्ग! तो उन्होंने कहा, इसमें जरूर कहीं भूल हो गई है! साधु बड़ा साधु था, वेश्या भी कोई छोटी वेश्या नहीं थी। गणित में कोई गड़बड़ है। वेश्या को नर्क जाना चाहिए और साधु को स्वर्ग जाना चाहिए।

मृत्यु के दूत उपर से पता लगाकर लौटे। खबर मिली कि वही ठीक आज्ञा है, वेश्या को स्वर्ग ले आओ, साधु को नर्क।

उन्होंने पूछा, हम बड़ी दुविधा में पड गए हैं तो पता चला कि जब भी साधु के घर में सुबह कीर्तन होता, तो ! वेश्या प्रभु प्रेम में रोती थी क्योंकि उसका घर आश्रम के सामने ही था। रोते हुए वह कहती कि मेरा जीवन व्यर्थ गया। कब वह क्षण आएगा सौभाग्य का कि ऐसे कीर्तन में मैं भी सम्मिलित हो जाऊं! मन भी होता, तो कभी द्वार के बाहर निकल आती। साधु के मंदिर के पास कान लगाकर खड़ी हो जाती। लेकिन मन में ऐसा. लगता कि मुझ जैसी पापी मंदिर में कैसे प्रवेश करे! तो कहीं साधु को पता न चल जाए, इसलिए चुपचाप छिप-छिपकर कीर्तन सुन लेती।

मंदिर की सुगंध उठती, धूप जलती, मंदिर के फूलों की खुशबू आती, मंदिर का घंटा बजता, और चौबीस घंटे, पूरे जीवन वेश्या मंदिर में रही। चित्त मंदिर में घूमता रहा और एक ही कामना थी कि अगले जन्म में चाहे बुहारी ही लगानी पड़े, पर मंदिर में ही जन्म हो। मंदिर के द्वार पर ही!

साधु भी कुछ पीछे न थे वेश्या से। जब भी वेश्या के घर रात को राग-रंग छिड़ जाता, आधी रात होती, तो वे करवट बदलते रहते! वे सोचते, सारी दुनिया मजा लूट रही है। हम कहां फंस गए! वह अपने चित्त से रात्रि में संगीत सुनता हुआ उसके स्वरुप को निहारता था।

इसलिए साधु को नरक और वैश्या को स्वर्ग में लाने का आदेश हुआ है।

सार :-
उपासना का अर्थ होता है, उसके पास बैठना। कहीं भी बैठे हों, अगर अनुभव करें कि परमात्मा के पास बैठे हैं, तो उपासना हो गई। घर में बैठे हों, कि मंदिर में, कि जंगल में, कहीं भी बैठे हों, अगर उसकी उपस्थिति अनुभव कर सकें, अगर अनुभव कर सकें उसका स्पर्श—कि हवाओं में वही छूता है, और सूरज की किरणों में वही आता है, और पक्षियों के गीत में उसी के गीत हैं, और वृक्षों में जो सरसराहट होती है हवा की, पत्ते जो कांपते हैं, वही कांपते है, सागर की जो लहर हिलती है, यह उसी की तरंगें हैं—अगर ऐसी प्रतीति हो सके, तो उपासना हो गई।

सबका मॉलिक एक है

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