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मौन

॥ उतना बोलिए जितना आवश्यक हो॥

अपने द्वारा बोले गए प्रत्येक "बुरे शब्द" के लिए मनुष्य को फैसले के दिन सफाई देनी होगी ।
बुरे शब्द से हम "मौन" द्वारा ही बच सकते हैं ।
स्मरण रहे "सहज मौन" ही हमारे ज्ञान की कसौटी है ।

जानने वाला बोलता नहीं और बोलने वाला जानता नहीं । इस कहावत के अनुसार जब हम सूक्ष्म रहस्यों को जान लेते हैं, तो हमारी वाणी बंद हो जाती है । ज्ञान की सर्वोच्च भूमिका में "सहज मौन" स्वयमेव पैदा हो जाता है ।

स्थिर जल बड़ा गहरा होता है । "उसी तरह "मौन" मनुष्य के ज्ञान की गम्भीरता का चिन्ह है।
वाचलता पाण्डित्य की कसौटी नहीं है, वरन् गहन गंभीर मौन ही मनुष्य के पंडित और ज्ञानी होने का प्रमाण है ।

"मौन" ही मनुष्य की विपत्ति का सच्चा साथी है, जो अनेक कठिनाइयों से उसे बचा लेता है ।

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