ये जगत बड़ा अनूठा है।
हर कोई दूसरे से मांग रहा है जो उस के पास है ही नही।
हम दूसरे के पास प्रेम मांगते है , बिना सोचे समझे की उसके पास प्रेम है की नही ...? और उसके पास जब प्रेम नही मिलता तो हमे लगता है कि उसने धोखा दिया...
हम किसि से सहानुभूति मांगते है,
किसी का ध्यान ,अटेंशन मांगते हैं...
किसी का वक्त मांगते हैं।
उसके पास अपने लिए तो वक्त है नहीं , वो आप को वक्त क्या देगा....?
जो दूसरे के पास है ही नही , वो हम उससे मांगते हैं और दुखी होते हैं।
और दूसरे की भी मजबूरी है कि उसके पास वो भाव, प्रेम और श्रद्धा है ही नही वो कहा से दे...? जिसकी हम मांग कर रहे है।
हम मांगते रहते है। गिड़गिड़ाते रहते है। एहसास दिलाते रहते हैं और दूसरे को कुछ समझ ही नही आता।
क्यू है ये परवशता ? क्यों जताना पर्वशता...? हमे धिक्कार है ....इस परवशता पर...
तमाम उम्र इंसान सहारे ढूंढता है।
यही से ही शरीर में रोगों का जन्म होता है।
क्या हम बिना अपेक्षा से और सहजता से नही जी सकते...?
जीवन जीने की कला सीखे और सदैव याद रखें कि पहला सुख निरोगी काया
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