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लड्डू गोपाल

 

कमल किशोर सोने और हीरे के जवाहरात बनाने और बेचने का काम करता था। उसकी दुकान से बने हुए गहने दूर-दूर तक मशहूर थे। लोग दूसरे शहर से उसकी दुकान से गहने लेने और बनवाने आते थे।

इतना बड़ा कारोबार होने के बावजूद भी कमल किशोर बहुत ही शांत और सरल स्वभाव वाला व्यक्ति था। प्रतिदिन गीता शास्त्र पड़कर वह अपनी गद्दी पर बैठता था।

एक दिन उसका कोई मित्र उसकी दुकान पर आया जो कि अपने पत्नी सहित वृंदावन धाम से होकर वापस आ रहा था।

कमल किशोर एक सोने और हीरे जड़ित  हार को देख ही रहा था कि उसका मित्र उसकी दुकान पर पहुंचा। कमल किशोर का मित्र अपने साथ वृंदावन से एक बहुत सुंदर लड्डू गोपाल जिसका सवरूप अत्यंत मनमोहक था साथ लेकर आया था।

कमल किशोर लड्डू गोपाल जी के मनमोहक रुप सोंदर्य को देखकर अत्यंत आंनदित हुआ। उसने अपने हाथ में पकड़ा हुआ हार उस लड्डू गोपाल के गले में पहना दिया और अपने मित्र को कहने लगा कि देखो तो सही इस हार की शोभा लड्डू गोपाल के गले में पढ़ने से कितनी बढ़ गई है। 

उसका मित्र और कमल किशोर आपस में बातें करने लगे बातों बातों में ही उसका मित्र लड्डू गोपाल को हार सहित लेकर चला गया। दोनों को ही पता ना चला कि हार लड्डू गोपाल के गले में ही पड़ा रह गया है।

कमल किशोर का मित्र अपनी पत्नी सहित एक टैक्सी में सवार होकर अपने घर को रवाना हो गया। जब वह टैक्सी से उतरे तो भूलवश लड्डू गोपाल जी उसी टैक्सी में रह गए।

टैक्सी वाला एक गरीब आदमी था जिसका नाम बाबू था। वह दूसरे शहर से यहां अपने परिवार का पालन पोषण करने के लिए टैक्सी चलाता था। आज उसको अपने घर वापस जाना था जो कि दूसरे शहर में था। जब टैक्सी लेकर बाबू अपने घर पहुंचा तो उसने जब अपनी टैक्सी की पिछली सीट पर देखा तो उसका ध्यान लड्डू गोपाल जी पर पड़ा जो के बड़े शाही तरीके से पिछली सीट पर गले में हार धारण करके सुंदर सी पोशाक पहनकर हाथ में बांसुरी पकड़े हुए पसर कर बैठे हुए हैं।

बाबू यह देखकर एकदम से घबरा गया कि यह लड्डू गोपाल जी किसके हैं, लेकिन अब वह दूसरे शहर से अपने शहर जा चुका था जो कि काफी दूर था और वह सवारी का घर भी नहीं जानता था तो वह दुविधा में पड़ गया कि वह क्या करें लेकिन फिर उसने बड़ी श्रद्धा से हाथ धो कर लड्डू गोपाल जी को उठाया और अपने घर के अंदर ले गया।

जैसे ही उसने घर के अंदर प्रवेश किया, इतनी सुंदर स्वरूप वाले लड्डू गोपाल जी को देखकर उसकी पत्नी ने झट से लड्डू गोपाल जी को अपने पति के हाथों से ले लिया।

उसकी पत्नी जिसकी 8 साल शादी को हो चुके थे उसके अभी तक कोई संतान नहीं थी। गोपाल जी को हाथ में लेते ही उसकी ममतामई और करुणामई आंखें झर झर बहने लगी। ममता वश और वात्सल्य भाव के कारण ठाकुर जी को गोद में उठाते ही उसको ऐसे लगा उसने किसी अपने ही बच्चे को गोद में उठाया है और आंखों में आंसू बहाती हुए बोलने लगी अरे बाबू, तुम नहीं जानते कि आज तुम मेरे लिए कितना अमूल्य रत्न लेकर आए हो।

बाबू कुछ समझ ही नहीं पा रहा था कि मेरी पत्नी को अचानक से यह क्या हो गया है लेकिन उसकी पत्नी तो जैसे बांवरी सी हो गई थी वह गोपाल जी को अपने घर के अंदर ले गई और उससे बातें करने लगी," अरे लल्ला, इतनी दूर से आए हो तुम्हें भूख लगी होगी और उसने जल्दी जल्दी मधु और घी से बनी चूरी बनाकर और दूध गर्म करके ठाकुर जी को भोग लगाया।

उधर कमल किशोर ने जब अपनी दुकान पर हार को ना देखा तो उसने अपने मित्र को संदेशा भेजा तो मित्र ने आगे से जवाब दिया ,"अरे मित्र! वह  माखन चोर और चित् चोर; हार सहित खुद ही चोरी हो गया है। मैं तो खुद इतना परेशान हूं"।

कमल किशोर अब थोड़ा सा परेशान हो गया कि ईतना कीमती हार ना जाने कहां चला गया लेकिन फिर भी अपने सरल स्वभाव के कारण उसने अपने मित्र को कुछ नहीं कहा और उसने अपने मन में सोचा कि कोई बात नहीं मेरा हार तो ठाकुर जी के ही अंग लगा है अगर मेरी भावना सच्ची है तो ठाकुर जी उसको पहने रखें।

ऐसे ही एक दिन कमल किशोर को व्यापार के सिलसिले में दूसरे शहर आना पड़ा, जहां पर बाबू रहता था लेकिन दुर्भाग्यवश जब वो उस शहर में पहुंचा तो अचानक से इतनी बारिश शुरू हो गई कि कमल किशोर को जहां पहुंचना था वहां पहुंच ना सका और तब वहां बाबू अपनी टैक्सी लेकर आ गया और उसने परेशान कमल किशोर को पूछा बाबूजी आप यहां क्यों खड़े हो बारिश तो रुकने वाली नहीं और सारे शहर में पानी भरा हुआ है। आप अपनी मंजिल तक ना पहुंच पाओगे और ना ही कहीं और रुक पाओगे मेरा घर पास ही है अगर आप चाहो तो मेरे घर आ सकते हो।

कमल किशोर जिसके पास सोने और हीरे के काफी गहने थे वह   अनजान टैक्सी वाले के साथ जाने के लिए थोड़ा सा घबरा रहा था। लेकिन उसके पास और कोई चारा भी नहीं था और वह बाबू के घर उसके साथ टैक्सी में बैठ कर चला गया।

घर पहुंचते ही बाबू ने मालती को आवाज दी कि आज हमारे घर मेहमान आए हैं उनके लिए खाना बनाओ।

कमल किशोर ने देखा कि बाबू का घर एक बहुत छोटा सा लेकिन व्यवस्थित ढंग से सजा हुआ है। घर में अजीब तरह के इत्र(चन्दन की खुशबु) आ रही है जो कि उसके हृदय को आनंदित कर रही थी।

जब मालती ने उनको भोजन परोसा तो कमल किशोर को उसमें अमृत जैसा स्वाद आया।

उसका ध्यान बार-बार उस दिशा की तरफ जा रहा था,जहां पर ठाकुर जी विराजमान थे वहां से उसको एक अजीब तरह का प्रकाश नजर आ रहा था तो हार कर कमल किशोर ने बाबू को पूछा कि अगर आपको कोई एतराज ना हो तो क्या आप बता सकते हो कि उस दिशा में क्या रखा है? मेरा ध्यान उसकी तरफ बहुत आकर्षित हो रहा है।

तो बाबू और मालती ने एक दूसरे की तरफ मुस्कुराते हुए कहा कि वहां पर तो हमारे घर के सबसे अहम सदस्य लड्डू गोपाल जी विराजमान है। तो कमल किशोर ने कहा," क्या मैं उनके दर्शन कर सकता हूं। तो मालती उनको उस कोने में ले गई जहां पर लड्डू गोपाल जी विराजमान थे।

कमल किशोर लड्डू गोपाल जी को और उनके गले में पड़े हार को देखकर एकदम से हैरान हो गया यह तो वही लड्डू गोपाल है और यह वही हार है,जो मैंने अपने मित्र के लड्डू गोपाल जी को डाला था।

कमल किशोर ने बड़ी विनम्रता से पूछा कि," यह गोपाल जी तुम कहां से लाए?

बाबू जिसके मन में कोई  छल कपट नहीं था उसने कमल किशोर को  सारी बात बता दी कि कैसे उसको  सोभाग्य से गोपाल जी मिले और उनके, हमारे घर आने से हमारा दुर्भाग्य, सौभाग्य में बदल गया।

तो कमल किशोर ने कहा क्या तुम जानते हो कि जो हार ठाकुर जी के गले में पड़ा है उसकी कीमत क्या है?

तो बाबू और मालती ने बड़ी विनम्रता से हाथ जोड़कर कहा कि जो चीज हमारे लड्डू गोपाल जी के अंग लग गई हम उसका मूल्य नहीं जानना चाहते और हमारे लल्ला के सामने किसी चीज किसी हार का कोई मोल ही नहीं है। तो कमल किशोर एकदम से चुप हो गया और उसने मन में सोचा कि चलो अच्छा है मेरा हार ठाकुर जी ने अपने अंग लगाया हुआ है।

अगले दिन जब वह चलने को तैयार हुआ और बाबू उनको टैक्सी में लेकर उनके मंजिल तक पहुंचाने गया।

जब कमल किशोर टैक्सी से उतरा और जाने लगा तभी बाबू ने उनको आवाज लगाई कि ज़रा रुको यह आपका कोई सामान हमारी टैक्सी में रह गया है।
कमल किशोर ने देखा कि वह अपना जेवर से भरा बैग टैक्सी में ही छोड़ कर जा रहे थे।

कमल किशोर की आंखों में आंसू आ गए कि जब तक मैंने निश्छल भाव से ठाकुर जी को वह हार धारण करवाया हुआ था तब तक उन्होंने पहने रखा। मैंने उनको पैसों का सुनाया तो उन्होंने मेरा अभिमान तोड़ने के लिए यह सब लीला रची।

वह गीता का पहला अध्याय याद करने लगा।
क्या लेकर आए थे और क्या लेकर जाना है
खाली हाथ आए थे, खाली हाथ जाना है।
जो लिया यहीं से लिया, जो दिया यहीं पर दिया

सार

ठाकुर जी जैसा चाहते हैं वैसा ही होता है हम तो निमित्त मात्र हैं। कौन ठाकुर जी को वृंदावन से लाया और किसके घर आकर वह विराजमान हुए यह सब ठाकुर जी की लीला है जिसके घर रहना है जिसके घर सेवा लेनी है यह सभी जानते हैं हम लोग तो निमित्त मात्र हैं बस हमारे भाव शुद्ध होने चाहिए। ठाकुर जी तो बड़े बड़े पकवान नहीं बल्कि भाव से खिलाई छोटी से छोटी चीज को भी ग्रहण कर लेते हैं।

बोलो वृन्दावन बिहारी लाल की जय

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