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जिन्दा लाश

हमारे समाज में कुछ भी होता रहे , हम तो बस अपनी राह चलेंगे. हमें किसी के काम से कोई मतलब नहीं.

कुछ ऐसा ही हाल हो गया हैं आजकल हमारा. हम सब अपनी अपनी जिंदगी में इतना मशरूख हैं की हमें समाज की कोई चिंता नहीं.

अभी हाल ही में एक वाख्या सामने आया है जिसमे एक आदमी ने एक सरकारी बस के चालक को पीट पीट कर मार दिया . उस बस के चालक का कसूर सिर्फ इतना था की उसने दोषी व्यक्ति को हलकी सी टक्कर मार दी. दोषी जबकि एक दुपहिया वाहन पर सवार था.

शर्म तो मुझे तब आई जब ये पता चला की उस बस की सारी सवारियाँ वहीँ खड़ी तमाशा देख रही थी. वे सब एक जिन्दा लाश की तरह बस तमाशे को देख रही थी. पिछले दो दिन से बस का पूरा संघ हड़ताल पर है.

अब क्या होगा हम लोग उस चालक के दुःख में कुछ मोमबत्तियां जलाएंगे और पैदल भी चलेंगे, पर क्या इससे हमारा समाज सुधरेगा ?

नहीं !!!!!

ऐसे ही कई सच्चाई भरे किस्से हैं जो मानवता को जड़ से ख़त्म कर देते हैं.

बदलाव अगर लाना हैं तो वो हमें अपने अंदर लाना होगा और तभी समाज में बदलाव आएगा. हमें एक जिन्दा लाश से बदलकर एक जीवित मानव बनना होगा.

बड़े ही दुःख से लिखी मेरी ये निम्न पक्तियां
मोमबत्ती जलाने की नयी प्रथा आई हैं

हर किसी ने हर गम में अब मोमबत्ती जलाई हे

समाज में हो रही किसी गलत घटना को नहीं रोकेंगे

पर घटना के बाद मोमबत्ती जलाने में अपना सबकुछ झोकेंगे

मोमबत्ती जला कर क्या बताना चाहते हो

क्या अपने आप कायर कहलाना चाहते हो

ऐसा नहीं हैं तो अभी तलवार उठाओ

और जुर्म जहाँ उठे उसे वही दबाओ

तुम्हारे साहस से जुर्म दम तोड़ देगा

अगर चुप रहोगे तो ये इंसानियत को निचोड़ देगा

कोई जंग चुप रह कर नहीं लड़ता

और बिना लड़े तो ये देश आगे नहीं बढ़ता

-अनिरुद्ध

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