विवाह
आजकल समाज में बच्चों के विवाह को लेकर इतनी सजगता आ गई है कि आपसी रिश्ते नहीं हो पा रहे हैं। 27-28-32 वर्ष की बहुत सी लड़कियाँ घर बैठी हैं, क्योंकि उनके सपने हैसियत से बहुत ज्यादा हैं। यह स्थिति समाज की छवि को खराब कर रही है। सबसे बड़ा मानव सुख, सुखी वैवाहिक जीवन होता है। पैसा भी आवश्यक है, लेकिन कुछ हद तक। पैसों की वजह से अच्छे रिश्ते ठुकराना गलत है। पहली प्राथमिकता सुखी संसार और अच्छा घर-परिवार होना चाहिए। ज्यादा धन के चक्कर में अच्छे रिश्तों को नजरअंदाज करना गलत है। "संपत्ति खरीदी जा सकती है, लेकिन गुण नहीं।"
30 की उम्र के बाद विवाह नहीं होता, समझौता होता है और मेडिकल स्थिति से भी इसमें बहुत सी समस्याएँ उत्पन्न होती हैं। आज इससे भी बुरी स्थिति कुंडली मिलान के कारण हो गई है। हम अच्छे लड़के और घर के होने के बावजूद कुंडली की वजह से रिश्ते छोड़ देते हैं। 36 में से 20 या फिर 36/36 गुण मिलने पर भी जीवन में तकलीफें हो रही हैं, क्योंकि हमने लड़के के गुण नहीं देखे।
समाज में लोग बेटी के रिश्ते के लिए (लड़के में) चौबीस कैरेट का सोना खरीदने जाते हैं और चार-पाँच साल व्यतीत हो जाते हैं। उच्च "शिक्षा" या "जॉब" के नाम पर भी समय व्यतीत कर देते हैं। लड़के देखने का अंदाज भी समय व्यतीत का अनोखा उदाहरण हो गया है। खुद का मकान, फर्नीचर, कमरे, गाड़ी, रहन-सहन, खान-पान, भाई-बहन, बंटवारा, माँ-बाप का स्वभाव, नाते-रिश्तेदार, कद, रंग-रूप, शिक्षा, कमाई, बैंक बैलेंस और सोशल मीडिया पर एक्टिवनेस जैसी बातें पूछी जाती हैं।
हालात ऐसे हैं कि माँ-बाप की नींद 30 की उम्र पर खुलती है। फिर चार-पाँच साल की दौड़-धूप बच्चों की जवानी को बर्बाद कर देती है। इस वजह से अच्छे रिश्ते हाथ से निकल जाते हैं और माँ-बाप अपने ही बच्चों के सपनों को चूर-चूर कर देते हैं। एक समय था जब खानदान देखकर रिश्ते होते थे, जो लम्बे भी निभते थे। समधी-समधन में मान-मनुहार थी, सुख-दु:ख में साथ था, रिश्तों की अहमियत का अहसास था। धन-माया कम थी, मगर खुशियाँ घर-आँगन में झलकती थीं।
आज की स्थिति में, माता-पिता को जागरूक होना होगा और लड़कियों की शादी 22-24 साल की उम्र में करनी चाहिए और लड़के की 25-26 साल की उम्र में। "घर, गाड़ी, बंगला से पहले व्यवहार तौलो।" माँ-बाप भी आर्थिक चकाचौंध में बह रहे हैं। पैसे की भागमभाग में रिश्ते-नातेदार छूट रहे हैं, घर-परिवार टूट रहे हैं, प्रेम और प्यार सूख रहा है। समाज को अब जागना जरूरी है अन्यथा रिश्ते ढूंढते रह जाएंगे।
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