यह दिन भी नहीं रहेंगे
एक अँधियारी रात में कोई प्रौढ़ व्यक्ति नदी के तट से कूदकर मरने के लिए विचार कर रहा था। मूसलाधार बारिश थी, नदी पूरे बाढ़ पर थी। आकाश में घने बादल छाए हुए थे, बीच-बीच में बिजली चमक रही थी। किसी समय वह उस क्षेत्र का सबसे धनी व्यक्ति था। लेकिन अचानक घाटे में उसकी सारी सम्पदा चली गयी।
इसी वजह से वह निश्चय करके यहाँ आया था। लेकिन वह नदी में कूदने के लिए जैसे ही चट्टान के किनारे पहुँचने को हुआ, कि किन्हीं दो वृद्ध, परन्तु मजबूत हाथों ने उसे थाम लिया। तभी बिजली चमकी और उसने देखा कि आचार्य रामानुज उसे पकड़े हुए हैं।
आचार्य ने सेठजी से इस अवसाद का कारण पूछा और सारी कथा सुनकर वह उसे अपने आश्रम में ले आये।
आचार्य बोले, "तो तुम यह स्वीकार करते हो कि पहले तुम सुखी थे?
वह बोला- हाँ तब मेरे सौभाग्य का सूर्य पूरे प्रकाश से चमक रहा था और अब सिवाय अंधियारे के मेरे जीवन में और कुछ भी बाकी नहीं है।
यह सुनकर आचार्य रामानुज बोले,"दस दिन तक तुम इसी आश्रम में रहो फिर उसके बाद तुम जहां जाना चाहो चले जाना।
अब सेठजी आधी रात को आश्रम की सुख सुविधा देखकर रुक गए।
सुबह हुई तो आश्रम के नियमानुसार मंदिर की घंटी फिर सत्संग फिर लंगर सेवा , हवन इत्यादि में सेठजी के 10 दिन कैसे निकल गए उन्हें पता ही नहीं चला।
ग्यारवें दिन आचार्य ने सेठजी को बुलाया और कहा कि बताइए अब तुम क्या चाहते हो?
सेठजी बोले,"दिन के बाद रात्रि और रात्रि के बाद दिन। जब दिन नहीं टिका तो रात्रि कैसे टिकेगी? परिवर्तन प्रकृति का शाश्वत नियम है। जब अच्छे दिन नहीं रहे तो बुरे दिन भी नहीं रहेंगे।
आचार्य मुस्करा कर सेठजी को देखने लगे। वह समझ गए की अब सेठजी में परिस्तिथियों को स्वीकार करने की ताकत आ चुकी है।
सार :-
जो इस शाश्वत नियम को जान लेता है, उसका जीवन उस अडिग चट्टान की भाँति हो जाता है, जो वर्षा व धूप में समान ही बनी रहती है।
जो आज हे कल को नही रहेगा,रात के बाद सुबह जरूर होती है और सुख दुख का खेल तो चलता ही रहेगा। इसको कोई बदल नही सकता।
सदैव याद रखें
यह दिन भी नहीं रहेंगे
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