प्रश्न
धरती पर जन्म और मृतयु का खेल आरम्भ से चल रहा है। जन्म के बाद हमारे सम्बन्ध बनते हैं। संबंधों के साथ जिम्मेवारिया और समस्याओं का खेल आरम्भ होता है। फिर सुख और दुःख का खेल आरम्भ होता है। जो जितना सुखी, उसे कम रोग और लंबी आयु। जो जितना दुखी, उसे अधिक रोग और छोटी आयु।
जो परिस्तिथि हमारे नियंत्रण में नहीं होती,अगर हम उन्हें ख़ुशी से स्वीकार नहीं कर पाते तो हमें दुखी होकर स्वीकार करना पड़ता है।
भगवान् की बनाई हुई इस सृष्टि में खुश रहने का अधिकार सभी को है परंतु इंसान सदैव खुश रहता नहीं है।
अगर आप चाहते है कि हमें जीवन जीने की कला आ जाये तो नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर की जानकारी प्राप्त करनी होगी।
1, जीवन जीने के लिए दो प्रकार के सुख की आवश्यकता होती है
1) बाहरी सुख (रोटी, कपडा और मकान)
2) आंतरिक सुख (सुख शांति और ख़ुशी)
क्या दोनों सुख हमारे जीवन में हैं?
2, जिसके पास अधिक धन है, वह सुखी या जिसके पास धन की कमी है वह सुखी?
3, कहते हैं "जैसा अन्न वैसा मन" क्या केवल सात्विक आहार से हम अपने मन पर विजय प्राप्त कर सकते हैं?
4, कहते हैं "गुरु बिना गति नहीं" कितने परसेंट लोग हे जिनकी सद्गति हो चुकी है?
5) क्या हम इसमें पास हैं?
1,"एक चुप सो सुख, अंतर्मुखी सदा सुखी"
2,कम बोलो, मीठा बोलो, धीरे बोलो और युक्ति युक्त बोलो।
3, बुरा मत देखो, बुरा मत सुनो और बुरा मत बोलो।
6) क्या यह संभव है?
1, मोह माया का त्याग कर दो।
2, कैसी भी परिस्तिथि हो परन्तु मेरी स्तिथि पर उसका प्रभाव न पड़े।
3, मेरी बात किसी को बुरी न लगे और किसी की बात मुझे बुरी न लगे।
4, मेरा एक भी कर्म पाप के खाते में न जाये।
5, बीती हुई बात याद न आए, भविष्य की चिंता न सताए, केवल वर्तमान का सुख निरंतर मिलता रहे।
6, सम्बन्ध संपर्क में जो लोग भी आते है, किसी एक से भी कंप्लेंट न हो।
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