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आवेश

॥आवेश प्रगति पथ का प्रमुख अवरोध॥

  "आवेश"  प्रधान व्यक्ति का हर काम उतावली से भरा होता है ।  वह अपने काम में आवश्यक धैर्य  तथा संतुलन नहीं रख पाता ।  समय से पूर्व फल की आकांक्षा करने पर जब वह  पूरी नहीं होती तब उत्तेजित होकर खीझ उठता है । तब वह या तो अपने कर्तव्य कर्म से चिढ़ने लगता है अथवा समाज को दोषी मानकर द्वेष  करने लगता है और बदले में अपने विरोधी पैदा कर लेता है ।
"आवेश"  प्रधान व्यक्ति की बेल कभी सिरे  नहीं चढ़ती । उसकी अस्त-व्यस्त गति उसके पैरों को उलझाती रहती है । उसके काम बिगड़ते अथवा कुरूप होते रहते हैं,  जिससे उसे एक  दिन स्वयं अपने से अरुचि हो सकती है और तब किसी ऊँचे लक्ष्य को पाना तो क्या सामान्य जीवन भी खिन्नता से भर जाता है ।
  "आवेश" निश्चय ही एक मानसिक रोग है । जिसका उपचार " धैर्य,"  *"संतुलन" तथा " स्थिरता" ही है ।  यदि आप में "आवेश" की दुर्बलता है तो पहले अभ्यास एवं प्रयत्न पूर्वक उसे धैर्य,  संतुलन तथा स्वयं से स्थानापन्न कर लीजिए, तब शांति पूर्वक अपना लक्ष्य निर्धारित करिए ।

दिशा का निर्णय करिए और सोचे हुए सुनियोजित कार्यक्रम के अनुसार गंतव्य की ओर कदम बढ़ाइए ।

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