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टाटा सूमो कि कहानी



दोस्तों टाटा सूमो का नाम सुनते हैं हमारे मन में जो ख्याल आता हैं वो हैं जापानी पहलवान सूमो का . हम सब ये मानते हैं कि सूमो का नाम वहीँ से आया हैं . पर ये सही नहीं हैं . सूमो का नाम जहाँ से आया हैं उनका नाम हैं सुमंत मूल्गाओकर , जिनके नाम के शुरू के अक्षर से ये नाम बना हैं.

उन्हें टेल्को जिसमे कि टाटा कि गाड़ियाँ बनती  हैं, उसका निर्माता भी कहा जाता हैं.

तो आइये जानते हैं इनके बारे मैं कुछ.

सुमंत मूल्गाओकर कर जन्म 5 मार्च 1906 को बम्बई में हुआ था. इन्होने अपनी विज्ञान में स्नातक कि डिग्री इम्पीरियल कॉलेज लंदन से सं 1929 में प्राप्त करी थी. इन्होने अपनी पढाई पूरी होने के बाद सी पी सीमेंट वर्क्स में सन 1930 में एक इंजिनीयर के तोर पर शुरुवात . और फिर ACC कि स्थापना के बाद सन 1938 में उससे जुड़े.

1932 में उनका विवाह श्रीमती लीला से हुआ. भारतीय व्यवसायी जे आर दी टाटा से उनकी मुलाकात सन 1943 में हुई थी, जब वे योरोप से एक व्यावसायिक दोरे से भारत लोट रहे थे. जे आर डी टाटा ने उन्हें अपने साथ काम करने का न्योता दिया जिसे उन्होंने सं 1947 में स्वीकारा.

उन्हें तब टेल्को के डायरेक्टर के रूप में शामिल किया गया . उन्हें आमतोर पर टेल्को का निर्माता भी कहा जाता हैं, जिन्होंने चार दशकों तक टेल्को का नेतृत्व किया. अपने टाटा के कार्यकाल में उन्हें विभिन्न समूहों का नेतृत्व करने का मोका मिला जिसमे टिस्को, टाटा एक्सपोर्ट्स,टाटा कंसल्टिंग इंजीनियरिंग आदि शामिल हैं. कारखाने लगाने, अनुसंधान केंद्र स्थापित करने में तो उन्हें जादुई दक्षता हासिल थी. उन्हें फोटो खीचने का, पुस्तक पढने का भी शोक था.

उनका लक्ष्य शुरू से ही स्वदेशी निर्माण का था और वो हर गाड़ी को भारत में ही निर्मित देखना चाहते थे. जिसका फल आज टाटा इंडिका , टाटा सूमो और टाटा कि विभिन्न गाड़ियों के रूप में देखा जा सकता हैं. उन्हें विभिन्न खिताबों से नवाजा गया हैं जिनमे सर वाल्टर पुच्केय प्राइज, जो उहे सन  1967 में प्राप्त हुआ था, इम्पीरियल कॉलेज कि फ़ेलोशिप , भारत शरकार द्वारा पदम् भूषण सन 1990 में आदि शामिल हैं.

उनके बारे में एक कहानी बड़ी ही प्रचलित है. अक्सर होता ऐसा था कि टाटा समूह के सभी अधिकारी दोपहर में एक साथ ही खाना खाया करते थे. परन्तु कई दिनों से सुमंत खाने के समय बहार जाते और ठीक खाने का समय ख़त्म होने से पहले कंपनी लोट आते. इसको देखते हुए ऐसी अफवाहे उड़ने लगी कि शायद टाटा के डीलर इन्हें कही बाहर महेंगे होटल में खाना खिलवाते हैं.

परन्तु जब एक दिन उनके कुछ साथियों को उनका पीछा किया तो उन्होंने ने पाया कि , सुमंत हाईवे के पास एक ढाबे में रुके और उन्होंने वहीँ खाना आर्डर किया और कुछ ट्रक चालको के बीच बैठ कर वो खाना खाया. वहीँ खाना खाते खाते वो ट्रक चालकों से टाटा के ट्रक के बारे में उनके अनुभव को पूछते जिसमे अच्छी और बुरी दोनों ही बातें शामिल थी. ताकि वे उसमे आवश्यक सुधार कर सकें. उनकी इन्ही सब बातों कि वजह से टाटा अपने ट्रको में सुधार लाती गई और ट्रक बनाने वाली अग्रणी  कंपनी बनी.

जब 1994 में टाटा ने अपनी SUV  बाज़ार में निकाली तो उसे सूमो नाम दिया गया. जिसे सुमंत के सु और मूल्गाओकर के मो से मिल कर बनाया गया हैं. किसी भी कर्मचारी को दिए जाने वाली ये सबसे बड़ी श्रधांजलि हैं.

उन्होंने सं 1989 में इस धरती को अलविदा कह दिया.

उने जीवन से हमें प्रेरणा मिलती हैं कि अपने कर्म और कार्यालय के प्रति निष्ठावान होना चाहिए.

आशा करता हूँ ये कहानी आप सब को पसंद आई होगी. आपको ये कहानी कैसी लगी जरूर बताना . और हां , मुझे आप ये भी बताना कि आपको और किस कि कहानी पसंद हैं. 





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