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कौन धोबी कौन महात्मा?

एक नदी तट पर स्थित बड़ी सी शिला पर एक महात्मा बैठे हुए थे। वहाँ एक धोबी आता है किनारे पर वही मात्र शिला थी जहां वह रोज कपड़े धोता था। उसने शिला पर महात्मा जी को बैठे देखा तो सोचा- अभी उठ जाएंगे, थोड़ा इन्तजार कर लेता हूँ अपना काम बाद में कर लूंगा। एक घंटा हुआ, दो घंटे हुए फिर भी महात्मा उठे नहीं !

धोबी नें हाथ जोड़कर विनय पूर्वक निवेदन किया कि महात्मन् यह मेरे कपड़े धोने का स्थान है आप कहीं अन्यत्र बिराजें तो मै अपना कार्य निपटा लूं।

महात्मा जी वहाँ से उठकर थोड़ी दूर जाकर बैठ गए। धोबी नें कपड़े धोने शुरू किए, पछाड़ पछाड़ कर कपड़े धोने की क्रिया में कुछ छींटे उछल कर महात्मा जी पर गिरने लगे। महात्मा जी को क्रोध आया, वे धोबी को बुरा भला कहने लगे।

महात्मा को क्रोधित देख धोबी ने सोचा अवश्य ही मुझ से कोई अपराध हुआ है। अतः वह हाथ जोड़ कर महात्मा से माफी मांगने लगा।

महात्मा ने कहा – दुष्ट प्राणी, तुझ में शिष्टाचार तो है ही नहीं, देखता नहीं तूं गंदे छींटे मुझ पर उड़ा रहा है?

धोबी ने कहा – महाराज शान्त हो जाएं, मुझ  से चुक हो गई, लोगों के गंदे कपड़े धोते धोते मुझे ध्यान ही न रहा, क्षमा कर दें।
धोबी का काम पूर्ण हो चुका था, उसने साफ कपडे समेटे और महात्मा जी से पुनः क्षमा मांगते हुए लौट गया।

महात्मा नें देखा धोबी वाली उस शिला से निकला गन्दा पानी मिट्टी के सम्पर्क से स्वच्छ और निर्मल होकर पुनः सरिता के शुभ्र प्रवाह में लुप्त हो रहा था, लेकिन महात्मा के अपने वस्त्रों से  उमस और सीलन भरी बदबू बस गई थी।

महात्मा को अपनी गलती का एहसास हो गया था।
अब महात्मा जी का समय हो गया था सत्संग प्रवचन देने के लिए। रास्ते में वह मन ही मन सोचते हुए जा रहे थे कि मैं प्रवचन तो देता हूं कि क्रोध करना नहीं चाहिए सब में परमात्मा को देखना चाहिए परंतु मुझे क्रोध आया ही क्यों।

इस प्रश्न का उत्तर महात्मा जी के पास नहीं था।

सार :-
ज्ञान सुनना और सुनाना बहुत सहज है परंतु धारण करना इसमें मेहनत है इसलिए
कौन धोबी कौन महात्मा?

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