जीवन पर पंक्तियाँ
कुछ पंक्तियाँ जीवन के ऊपर.
कुछ कमाने को घर से बाहर क्या गए
हम असली कमाई घर ही छोड़ गए
ये भाग दौड़ की भी है कैसी कमाई
ना भूक ही लगी ना माँ खिलाने आई
क्या कमाना था और क्या कमा रहे हैं
इंसानियत छोड़ कागज के टिल्ले जमा रहे हैं
एक साथ पैसे और प्यार को न जाने क्या हो जाता है
एक के आते ही दूसरा खो जाता है
यूँ तो हर शक्स प्यार का भूखा है
पर वक्त नहीं है प्यार जताने का
न जाने साथ क्या ले जायेगा
बस भूत सवार है पैसा कमाने का
लोग पूछते हैं कि तुझे पैसे से इतनी नफरत क्यूँ है
अब कौन बताये उन्हें की हमें इंसानियत से इतनी मोहब्बत क्यूँ है।
क्या पैसे कमाने को ही जनम लिया था
जो भाग रहा है आँखे मीचे
ऊपर जा कर क्या जवाब देगा
कि क्या लाया साथ जो कमाया नीचे
-अनिरुद्ध शर्मा
कुछ कमाने को घर से बाहर क्या गए
हम असली कमाई घर ही छोड़ गए
ये भाग दौड़ की भी है कैसी कमाई
ना भूक ही लगी ना माँ खिलाने आई
क्या कमाना था और क्या कमा रहे हैं
इंसानियत छोड़ कागज के टिल्ले जमा रहे हैं
एक साथ पैसे और प्यार को न जाने क्या हो जाता है
एक के आते ही दूसरा खो जाता है
यूँ तो हर शक्स प्यार का भूखा है
पर वक्त नहीं है प्यार जताने का
न जाने साथ क्या ले जायेगा
बस भूत सवार है पैसा कमाने का
लोग पूछते हैं कि तुझे पैसे से इतनी नफरत क्यूँ है
अब कौन बताये उन्हें की हमें इंसानियत से इतनी मोहब्बत क्यूँ है।
क्या पैसे कमाने को ही जनम लिया था
जो भाग रहा है आँखे मीचे
ऊपर जा कर क्या जवाब देगा
कि क्या लाया साथ जो कमाया नीचे
-अनिरुद्ध शर्मा
Amazing lines! Got me into the thought process.
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