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परिस्थिति

कितनी भी बड़ी बात आ जाये, चाहे तो अपने कमज़ोर संस्कार के कारण वा कोई हिमालय जैसी परिस्थिति के कारण ... तो भी आप बच्चों को अचल-अडोल रहना है ... बिल्कुल हल्के रहना है...।

कुछ भी हो ... अपने प्रभु के पास जाकर बैठ जाओ, और उनसे बातें करो, सब सहज हो जायेगा...।

कोई भी बात आने पर यदि आप थोड़ा-सा भी भारी हो जाते हों, तो पुरूषार्थ मुश्किल हो जाता है ... और मुश्किल कार्य करने से आत्मा थक जाती है ... और जिससे रास्ता भी लम्बा लगने लग जाता है...!

फिर बताओ, समय से पहले कैसे पहुँचोगे...?

इसलिए, सब कुछ प्रभु हवाले कर, हल्के रह, पुरूषार्थ करो...।

हल्के रहना अर्थात्...
• उमंग, उत्साह और खुशी में रहना...।
• सदा स्वयं को शुभ संकल्पों से भरपूर रखना...।

हल्के रहने वाली आत्मा पर व्यर्थ संकल्प वा माया किसी भी तरह का वार नहीं कर सकती।

वो आत्मा निर्विघ्न रह आगे से आगे कदम बढ़ा अपनी मंज़िल समीप ले आती है।
सो attention दे पुरूषार्थ करो, ना ही अलबेला होना है ... और ना ही दिलशिकस्त...।

आप बच्चे  (परमात्मा शिव) के प्यार में खोए रहो ... *यह प्यार ही आपको फरिश्ता बना देगा...

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