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मैं कौन हूँ और मेरा कौन है

रमेश नाम का एक व्यक्ति था। उसके गुरु एक सन्यासी थे। वह दुनिया दारी से ऊब सा गया था। वह अपने गुरु की तरह ही दुनियादारी छोड़कर सन्यासी बनंना चाहता था।
उसने अपने परिवार को यह बात बताई तो सभी ने मना कर दिय। यह कहते हुए की हम सब आपसे बहुत प्यार करते है।
फिर उसने अपने गुरु को यह बात बताई परंतु साथ ही कहा कि उनका घर-परिवार बच्चे और पत्नी उसे सन्यास लेने नहीं दे रहे हैं क्योंकि वह मुझसे बेहद प्यार करते हैं।

गुरु ने कहा, “पहली बात तो अपनी जिम्मेवारियो से भागकर संन्यास लेने से तुम्हारा मन अशांत रहेगा, इसलिए संन्यास मन और बुद्धि से लिया जाता है , शारीर से नहीं।
तुम्हे अंतिम स्वांस तक उनके साथ रहना है और अपनी जिम्मेवारियो को निभाना है।

रमेश बोला,"गुरूजी, मेरे पास कोई काम नहीं है। यह पैसे मांगते हैं मैं कहाँ से लाऊं।

गुरूजी बोले,"भगवान् ने दो चीज़े इंसान को दी हैं, कर्म और पुरुषार्थ और उसका जो भी परिणाम आता है वह प्रभु के हाथ में है, हमारे हाथ में नहीं है।

रमेश बोला,"गुरूजी, मैं घर पर रहकर संन्यास कैसे कर सकता हूँ।

गुरूजी बोले," कर्म भी करो , पुरुषार्थ भी करो परंतु सबसे लगाव और अलगाव रहकर।

गुरु ने उसे बहुत समझाया पर रमेश नहीं मान रहा था।

फिर गुरु ने कहा, “अच्छा ठीक है”। गुरु जी उस व्यक्ति को मठ में ले गए।
इसके बाद गुरु ने उसे योग विद्या सिखाई जिससे वह अपनी सांसे रोक कर  घंटो तक रह सकता था। यह सब सिखाने के बाद गुरु ने उसे एक योजना बताई और उसे घर भेज दिया।

दूसरे दिन, रमेश अपने घर पर स्वांस रोककर लेट गया।

परिवार के सारे लोग इकट्ठे हो गए। सभी रो रहे थे। विलाप कर रहे थे। वही उसकी पत्नी सबसे ज्यादा दुखी हो रही थी।
पूरे घर में कोहराम मच गया था। सभी की आंखे नम थी।

रमेश अपने योग अभ्यास से आसपास के माहौल को महसूस कर सकता था और सुन सकता था। कुछ ही देर बाद उस व्यक्ति के गुरु वहाँ पहुंचे। गुरु ने सभी को शांत किया। और अपने शिष्य के पड़े शरीरको देखा।

कुछ देर के बाद उसके परिवार वालो को कहा कि," इस व्यक्ति को मैं अपनी विद्या से जिंदा कर सकता हूँ।

यह बात सुनकर घर के सभी लोग बहुत खुश हो गए। सभी को एक उम्मीद की किरण नजर आ रही थी फिर सभी ने उस सन्यासी से कहा “तो आप यह काम जल्द से जल्द करिये”।

इस पर उस सन्यासी ने कहा “एक समस्या है, इस कार्य के लिए परिवार के किसी अन्य सदस्य को अपने प्राण त्यागना होगा।
यह सुन कर सभी लोगों की सांसे रुकी की रुकी रह गई। सभी ने एक दूसरे को देखा। सन्यासी ने परिवार के सभी सदस्यों से एक एक कर पूछा पर किसी ने भी हां नहीं कहा।

सन्यासी ने फिर उस व्यक्ति के पत्नी से कहा, अगर यह नहीं रहे तो तुम कैसे जियोगी। उसकी पत्नी ने तुरंत जवाब दिया,"मैं अपने बच्चो को नहीं छोड़ सकती"।

गुरु ने उस व्यक्ति के बच्चों से भी यही सवाल किया। उनका भी जवाब न ही थी। फिर यही सवाल उस व्यक्ति के माता-पिता से किया। उनका भी जवाब एक ही था।

इसके बाद गुरु रमेश के पास आए और बोले हे व्यक्ति तुम उठ खड़े हो जाओ। वह व्यक्ति उठ कर बैठ गया।

फिर उसके गुरु वहाँ से जाने लगे। उसने अपने गुरु के चरण पकड़ लिए और गुरु से कहा, “मैं भी आपके साथ चलता हु”।

गुरु ने कहा ,"नहीं पुत्र, तुम्हे रहना तो यहीं पडेगा परंतु यह जानलो कि मैं कौन हूँ और मेरा कौन है।

सबका मॉलिक एक है

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