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बेटी कहूं या लक्ष्मी

...पति ने घर मेँ पैर रखा....‘अरी सुनती हो !' आवाज सुनते ही पत्नी हाथ मेँ पानी का गिलास लेकर बाहर आयी और बोली बताओ।

"अपनी बेटी का रिश्ता आया है,
अच्छा भला इज्जतदार सुखी परिवार है, लडके का नाम युवराज है । बैँक मे काम करता है।  बस बेटी हाँ कह दे तो सगाई कर देते हैं."

(बेटी उनकी एकमात्र लडकी थी..
घर मेँ हमेशा आनंद का वातावरण रहता था । हँसता खेलता परिवार)

कभी कभार सिगरेट व पान मसाले के कारण उनकी पत्नी और बेटी के साथ कहा सुनी हो जाती लेकिन वो मजाक मेँ निकाल देते । बेटी खूब समझदार और संस्कारी थी ।

बारहवी  पास करके टयूशन, सिलाई का काम करके पिता की मदद करने की कोशिश करती ।

अब तो बेटी  ग्रेज्यूऐट हो गई थी और नौकरी भी करती थी।
लेकिन पिता उसकी पगार मेँ से एक रुपया भी नही लेते थे...और रोज कहते ‘बेटी यह पगार अपने पास रख, भविष्य मेँ तेरे काम आयेगी ।'

दोनो घरो की सहमति से बेटी और युवराज की सगाई कर दी गई और शादी का मुहूर्त भी निकलवा दिया। शादी के 15 दिन और बाकी थे।

पिता ने बेटी को पास मेँ बिठाया और कहा," बेटा तेरे ससुर से मेरी बात हुई...उन्होने कहा दहेज मेँ कुछ नही लेँगे, ना रुपये, ना गहने और ना ही कोई चीज, तो बेटा तेरे शादी के लिए मेँने कुछ रुपये जमा किए है। यह दो लाख रुपये मैँ तुझे देता हूँ।.. तेरे भविष्य मेँ काम आयेगे, तेरे खाते मे जमा करवा देता हूँ।.'

"जी पापा जी" - बेटी, छोटा सा जवाब देकर अपने कमरे मेँ चली गई। समय को जाते कहाँ देर लगती है ?

शुभ दिन बारात आंगन में आयी। पंडितजी ने चंवरी मेँ विवाह विधि शुरु की। फेरे फिरने का समय आया....

कोयल जैसे कुहुकी हो ऐसे बेटी दो शब्दो मेँ बोली,"रुको पडिण्त जी,मुझे आप सब की उपस्तिथि मेँ अपने पापा के साथ बात करनी है।"

“पापा आप ने मुझे लाड प्यार से बडा किया, पढाया, लिखाया खूब प्रेम दिया इसका कर्ज तो चुका सकती नही...,लेकिन युवराज और मेरे ससुर जी की सहमति से जो आपने दिया, दो लाख रुपये का चेक, उसे मैँ वापस देती हूँ।
इन रुपयों से मेरी शादी के लिये हुए उधार वापस दे देना और दूसरा चेक तीन लाख रूपए का जो मेने अपनी पगार मेँ से बचत की है...जब आप रिटायर होगेँ तब आपके काम आयेगेँ, मैँ नही चाहती कि आप को बुढापे मेँ आपको किसी के आगे हाथ फैलाना पड़े ! अगर मैँ आपका लडका होता तब भी इतना तो करता ना ? !!! "

वहाँ पर सभी की नजर बेटी  पर थी...

“पापा अब मैं आपसे जो दहेज मेँ मांगू वो दोगे ?"

पिता, भारी आवाज मेँ -"हां बेटा", इतना ही बोल सके ।

"तो पापा मुझे वचन दो"
आज के बाद आप सिगरेट को कभी हाथ नही लगाओगे....
तबांकू, पान-मसाले का व्यसन आज से छोड दोगे। सब की मौजूदगी मेँ दहेज मेँ बस इतना ही मांगती हूँ ।."

लडकी का पिता, मना कैसे करता ?

शादी मे लडकी की विदाई के समय कन्या पक्ष को रोते हुए देखा होगा लेकिन आज तो बेटी की बात सुनकर , बारातियों की आँखों मेँ आँसुओं कि धारा निकल चुकी थी।

मैँ दूर से उस बेटी को लक्ष्मी रुप मे देख रहा था....
रुपये का लिफाफा मैं अपनी जेब से नही निकाल पा रहा था....
साक्षात लक्ष्मी को मैं कैसे लक्ष्मी दूं ??

भगवान् ऐसी बेटी सबको दे

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