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दिये की दीवाली

इसी आस में माटी का टुकड़ा कुम्हार ने ढाला है
दिये-उजाले का त्योहार हमारा आने वाला है
जब त्योहार हमारा हे तो खुशियाँ बाहर क्यों भेजें
खुद ही दिए जलाकर खोलें खुशियों के हम दरवाजे
पिछली बार जो भूल करी थी उसका पछतावा कर लो
नही खरीदोगे सामान विदेशी ये दावा कर लो
आओ हम सब उस कुम्हार की इच्छा को पूरा कर दें
लेकर दिए उसी से उसके घर में भी खुशियाँ भर दें
_अनिरुद्ध शर्मा

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