ना तो उपहार चाहिये ना कोई अहसान चाहिये ना ही पैसा चाहिये ना कोई पहचान चाहिये शब्दों को पिरोकर माला बनाने वाला कवी हूँ मुझे बस कला का कदरदान चाहिए -अनिरुद्ध
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