जीवन की नई प्राथमिकता
हमने आजकल अपने जीवन की प्राथमिकता पैसा कमाना बना लिया है. इस प्राथमिकता को ध्यान में रखते हुए हम हर को काम भी करने को तैयार हो जाते हैं जो इंसानियत के परे है और जिसे करने को हमारा अंतरमन इजाजत नहीं देता.
इस पैसे की दोड़ में हम अपना घर,समाज और मानवीय कीमतें भूल चुके हैं.
इसी दोड और व्यस्तता को व्यक्त करती मेरी निम्न पंक्तियाँ
इस पैसे की दोड़ में हम अपना घर,समाज और मानवीय कीमतें भूल चुके हैं.
इसी दोड और व्यस्तता को व्यक्त करती मेरी निम्न पंक्तियाँ
न जाने किस दौड़ मे है जमाना
कि किसी को किसी से मिलने की फुरसत नहीं मिलती
भूक ही है ये दौलत की
जो खून से खून की किस्मत नही मिलती
जिन्दा रहने को बहुत है दौलत
पर फिर भी किसी की हसरत नहीं मिटती
बेच डाला देश ओ ईमान दौलत की खातिर इस कदर
की आईने से रु ब रु होने की हिम्मत नहीं मिलती
थोड़ी ही दौलत ठीक हैं की जिंदगी बीताने को
दौलत मंदो को तो खर्चने की फुरसत नही मिलती
-अनिरुद्ध
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