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मेरे देश को शांति पसंद है 

आसमान धुंधला है और समाज जल रहा है
क्यों कहते हो कि मेरा देश बदल रहा है
दंगा फसाद, भ्र्ष्टाचार फैला है सब जगह
कैसे मान लूँ की अच्छे दिनों का दौर चल रहा है
बाहर कदम रखा था कि खुशियां लेकर आऊंगा
पर जहां भी कदम रखु , वहीं कदम फिसल रहा है
ये हाय तौबा किस लिए ये शोरगुल क्यों है
शांति बनाए रखो इससे कोनसा हल निकल रहा है
मैंने तो उम्मीदों का दिया जलाया था मन में अपने
पर क्या पता था कि दिए में अपना ही जमीर जल रहा है
हर किसी के चेहरे पे बनावटी नकाब लगा है
बोल कुछ दिया और करने कुछ निकल रहा है

-अनिरुद्ध कुमार शर्मा

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