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माँ तुझे सलाम

माँ को लब्जों में जो पिरोने बैठा मैं लेके कलम हाथ में
कलम भी टूट के बोली माँ को बयां करना नहीं है मेरी ओकात में
-अनिरुद्ध शर्मा

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