tag:blogger.com,1999:blog-29687436752340231172024-03-20T23:36:19.373+05:30हिंदी महासागरHindi Mahasagarअनिरुद्ध शर्माhttp://www.blogger.com/profile/13002310161641964453noreply@blogger.comBlogger374125tag:blogger.com,1999:blog-2968743675234023117.post-64267946389084593492024-01-13T12:18:00.001+05:302024-01-13T12:18:32.432+05:30कर्मो का हिसाब किताब<p>एक स्त्री थी जिसे 20 साल तक संतान नहीं हुई। कर्म संजोग से 20 वर्ष के बाद वो गर्भवती हुई और उसे पुत्र संतान की प्राप्ति हुई किन्तु दुर्भाग्यवश 20 दिन में वो संतान मृत्यु को प्राप्त हो गयी। वो स्त्री बहुत रोई और उस मृत बच्चे का शव लेकर एक सिद्ध महात्मा के पास गई। </p> <p>महात्मा से रोकर कहने लगी मुझे मेरा बच्चा बस एक बार जीवित करके दीजिये, मात्र एक बार मैं उसके मुख से "माँ" शब्द सुनना चाहती हूँ। </p> <p>स्त्री के बहुत जिद करने पर महात्मा ने 2 मिनट के लिए उस बच्चे की आत्मा को बुलाया। तब उस स्त्री ने उस आत्मा से कहा तुम मुझे क्यों छोड़कर चले गए ? मैं तुमसे सिर्फ एक बार "माँ"' शब्द सुनना चाहती हूँ। </p> <p>उस आत्मा ने कहा कौन माँ ? कैसी माँ ! मैं तो तुमसे कर्मों का हिसाब-किताब चुकतु करने आया था। </p> <p>स्त्री ने पूछा कैसा हिसाब ! </p> <script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js"></script><!-- Post_inside --><ins style="display: block" class="adsbygoogle" data-full-width-responsive="true" data-ad-format="auto" data-ad-slot="1289243902" data-ad-client="ca-pub-2403663660424248"></ins><script>
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</script> <p>आत्मा ने बताया पिछले जन्म में तुम मेरी सौतन थी, मेरे आँखों के सामने मेरे पति को ले गई; मैं बहुत रोई तुमसे अपना पति माँगा पर तुमने एक न सुनी। तब मैं रो रही थी और आज तुम रो रही हो ! तब मेरा पति गया था, आज तुमने अपनी सन्तान खोई है। बस मेरा तुम्हारे साथ जो कर्मों का हिसाब था वो मैंने पूरा किया और मर गया। इतना कहकर आत्मा चली गयी। </p> <p>उस स्त्री को एक गहरा झटका लगा। </p> <p>उसे महात्मा ने समझाया," देखो मैने कहा था न, कि ये सब रिश्तेदार, माँ, पिता, भाई, बहन सब कर्मों के कारण जुड़े हुए हैं। हम सब कर्मो का हिसाब चुकतु करने आये हैं। यही हमारे रिश्तों की नियति है, इसलिए बस अच्छे कर्म करो ताकि हमे अपने संबोन्धो से केवल सुख ही प्राप्त हो। </p> <script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js"></script><!-- Post_inside --><ins style="display: block" class="adsbygoogle" data-full-width-responsive="true" data-ad-format="auto" data-ad-slot="1289243902" data-ad-client="ca-pub-2403663660424248"></ins><script>
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</script>अनिरुद्ध शर्माhttp://www.blogger.com/profile/13002310161641964453noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2968743675234023117.post-22993344835392465442023-10-22T19:29:00.001+05:302023-10-22T19:29:53.662+05:30ध्यान<p>ध्यान अर्थात् मन की स्थिरता।</p> <p>ध्यान के लिए किसी निश्चित स्थान की <br />आवश्यकता नहीं होती हैं। <br />ध्यान आप कही भी, किसी भी जगह, <br />किसी भी स्थिति,परिस्थिति में, <br />अपितु कोई भी कार्य करते हुए कर सकते हैं।</p> <p>आपका मन स्थिर हैं, अर्थात् आप ध्यान की अवस्था में है ।</p> <script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js"></script><ins style="text-align: center; display: block" class="adsbygoogle" data-ad-slot="6314579495" data-ad-client="ca-pub-2403663660424248" data-ad-format="fluid" data-ad-layout="in-article"></ins><script>
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</script>अनिरुद्ध शर्माhttp://www.blogger.com/profile/13002310161641964453noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2968743675234023117.post-82902202477754029342023-10-17T07:26:00.000+05:302023-10-17T07:26:00.145+05:30संतुष्ट कौन<p>एक महिला, जयपुर में एक PG ( पेइंग गेस्ट ) रखती हैं। </p> <p>उनका अपना पुश्तैनी घर है, उसमे बड़े बड़े 10 - 12 कमरे हर एक मे 3 बिस्तर  लगा रखे हैं। </p> <p>उनके PG में भोजन भी मिलता है और वह बड़े मन से बनाती और खिलाती हैं। </p> <p>उनके PG में ज़्यादातर नौकरी पेशा लोग और छात्र रहने आते हैं।</p> <p>सुबह नाश्ता और रात का भोजन और जिसे आवश्यकता हो तो उसे दोपहर का भोजन टिफिन में  करके भी देती हैं।</p> <p>पर उनके यहां एक बड़ा अजीबोगरीब नियम है कि हर महीने में सिर्फ 28 दिन ही भोजन पकेगा। शेष 2 या 3 दिन बाहर होटल में खाओ।</p> <script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js"></script><!-- Post_inside --><ins class="adsbygoogle" style="display: block;" data-full-width-responsive="true" data-ad-format="auto" data-ad-slot="1289243902" data-ad-client="ca-pub-2403663660424248"></ins><script>
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</script> <p>ये भी नही कि PG की रसोई में बना लो। रसोई सिर्फ 28 दिन खुलेगी। शेष 2 या 3 दिन रसोई बंद रहेगी। </p> <p>मैंने उनसे पूछा कि ये क्यों? ये क्या अजीबोगरीब नियम है। </p> <p>आपकी रसोई सिर्फ 28 दिन ही क्यों चलती है ?</p> <p>बोली , हमारा नियम है। </p> <p>हम भोजन के पैसे भी 28 दिन के ही लेते हैं। </p> <p>इसलिये रसोई सिर्फ 28 दिन चलती है।</p> <p>मैंने कहा ये क्या अजीबोगरीब नियम है ? और ये नियम भी कोई भगवान का बनाया तो है नही आखिर आदमी का बनाया ही तो है बदल दीजिये इस नियम को।</p> <p>उन्होंने कहा नहीं, नियम तो नियम है  ...</p> <p>एक दिन मैंने बस यूं ही फिर छेड़ दिया उनको , </p> <p>उस 28 दिन वाले अजीबोगरीब नियम पे।</p> <p>उस दिन वो खुल कर बोलीं, तुम नही समझोगे डॉक्टर साहब, </p> <script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js"></script><!-- Post_inside --><ins class="adsbygoogle" style="display: block;" data-full-width-responsive="true" data-ad-format="auto" data-ad-slot="1289243902" data-ad-client="ca-pub-2403663660424248"></ins><script>
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</script> <p>शुरू में ये नियम नही था। मैं इसी तरह, इतने ही प्यार से बनाती खिलाती थी पर इनकी शिकायतें खत्म ही न होती थीं </p> <p>कभी ये कमी तो कभी वो कमी सदैव असंतुष्ट ही रहते थे।</p> <p>सो तंग आ कर, मैंने ये 28 दिन वाला नियम बना दिया।</p> <p>28 दिन प्यार से खिलाओ और बाकी 2 - 3 दिन बोल दो कि जाओ, बाहर खाओ। </p> <p>उस 3 दिन में इनकी नानी याद आ जाती है। </p> <p>आटे दाल का भाव पता चल जाता है। ये पता चल जाता है कि बाहर कितना महंगा और कितना घटिया खाना मिलता है। </p> <p>दो घूंट चाय भी 15 - 20 रु की मिलती है।</p> <p>मेरी अहमियत ही उनको इन 3 दिन में पता चलती है। सो बाकी के 28 दिन बहुत कायदे में रहते हैं।</p> <p> </p> <p>सार ;-</p> <p>अत्यधिक सुख सुविधा की आदत व्यक्ति को असंतुष्ट और आलसी बना देती है।</p> <p>कृपया विचार करें।</p> <script async src="//pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js"></script><!-- Ani-Lab link unit --><ins class="adsbygoogle" style="display: block;" data-ad-format="link" data-ad-slot="2823923401" data-ad-client="ca-pub-2403663660424248"></ins><script>
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</script>अनिरुद्ध शर्माhttp://www.blogger.com/profile/13002310161641964453noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2968743675234023117.post-46317661870944072442023-10-10T09:20:00.000+05:302023-10-10T09:20:00.144+05:30मालिक पर विश्वास<p>एक बार एक व्यक्ति की  पान की दुकान थी। दीवार के साथ उसका ठीया बना हुआ था। 25 साल से उसकी दुकान थी। </p> <p>एक बार एमसीडी वाले आए जिनकी दुकान बाहर निकली हुई थी उनकी दुकानों को तोड़ रहे थे और इस भाई की भी दुकान तोड़ने के लिए जैसे पहुंचे वह रोते हुए अपनी दुकान को टूटते हुए देख रहा था और भगवान को बहुत बुरा भला कह रहा था कि अब मेरे परिवार का क्या होगा। <br />मैं अपना घर कैसे चलाऊंगा।</p> <p>दुकान टूट गई वह घर आ गया। उसकी जो सास थी वह अकेले रहती थी उसने अपना मकान बेचकर छोटा मकान ले लिया और अपने इस जवाई को ₹6,00,000 दे दिए।</p> <p>इन पैसों से उसने फिर से अपने घर के बाहर अपनी दुकान बनाई और अपने बच्चों के लिए एक पेस्ट्री पैलेस की दुकान खोल दी।</p> <p>3 महीने के बाद जब वह अपनी दुकान पर बैठा हुआ था उस समय भगवान का बहुत शुकराना कर रहा था की," हे प्रभु तेरा लाख-लाख शुक्रिया जो इतने वर्षों से मैं अपनी दुकान नहीं बना पाया था आज तूने मुझे अपनी दुकान दे दी और साथ में मेरे बच्चों को भी सेट कर दिया।</p> <p>सार:- <br />हम वह करते हैं जो हमें अच्छा लगता है परमात्मा वह करते हैं जो हमारे लिए अच्छा होता है इसलिए वर्तमान में हम जो देख रहे हैं और भविष्य में जो होने वाला है वह हम नहीं जानते परंतु जो होगा अच्छा ही होगा। हमें अपने मालिक पर विश्वास होना चाहिए।</p> <p>सबका मालिक एक है</p> <script async src="//pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js"></script><!-- Ani-Lab link unit --><ins class="adsbygoogle" style="display: block;" data-ad-format="link" data-ad-slot="2823923401" data-ad-client="ca-pub-2403663660424248"></ins><script>
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</script>अनिरुद्ध शर्माhttp://www.blogger.com/profile/13002310161641964453noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2968743675234023117.post-50059704844752110972023-10-07T20:40:00.000+05:302023-10-07T20:41:24.218+05:30बरसाना और नंदगांव<a href="https://drive.google.com/uc?id=1QSSMIhFtktm1mhw94zlYk-NQ64Wv6wja"><img style="background-image: none; border-right-width: 0px; padding-left: 0px; padding-right: 0px; display: inline; border-top-width: 0px; border-bottom-width: 0px; border-left-width: 0px; padding-top: 0px" title="0521_radhashtami_cover" border="0" alt="0521_radhashtami_cover" src="https://drive.google.com/uc?id=1dh_jrzY0OW3oir7hFf8bj1-gWLpwPE1c" width="662" height="498" /></a> <script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js"></script><!-- Post_inside --><ins style="display: block" class="adsbygoogle" data-full-width-responsive="true" data-ad-format="auto" data-ad-slot="1289243902" data-ad-client="ca-pub-2403663660424248"></ins><script>
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</script> <p><font face="Arial Unicode MS">आज भी बरसाना और नंदगांव जैसे गाँव आपको दुनिया में कहीं नहीं मिलेंगे, <br />दोनों में सिर्फ पांच छह मील का फर्क है !! ऊंचाई से देखने पर दोनों एक जैसे ही दीखते हैं !! <br />आज तक बरसाना वासी राधा को अपनी बेटी और नंदगांव वाले कान्हा को अपना बेटा मानते हैं !! 5160 बरस बीत गए परन्तु उन लोगों के भावों में फर्क नहीं आया !! <br />आज तक बरसाने की लड़की नंदगांव में ब्याही नहीं जाती सिर्फ इसलिए की नया रिश्ता जोड़ लिया तो पुराना भूल जाएगा !! हमारा राधाकृष्ण से प्रेम कम ना हो इसलिए हम नया रिश्ता नहीं जोड़ेंगे आपस में !! <br />आज भी नंदगांव के कुछ घरों की स्त्रियां घर के बाहर मटकी में माखन रखती हैं कान्हा ब्रज में ही है वेश बदल कर आएगा और माखन खायेगा !! <br />जहां 10 -12 बच्चे खेल रहे हैं उनमे एक कान्हा जरूर है ऐसा उनका भाव है आज भी !! <br />लेकिन आज भी बरसाने का वृद्द नंदगांव आएगा तो प्यास चाहे तड़प ले पर एक बूँद पानी नहीं पियेगा नंदगांव का क्योंकि उनके बरसाने की राधा का ससुराल नंदगांव है !! और बेटी के घर का पानी भी नहीं पिया जाता उनका मानना आज भी जारी है !! इतने प्राचीन सम्बन्ध को आज भी निभाया जा रहा है !! <br />धन्य है ब्रज भूमि का कण कण <br />करोड़ों बार प्रणाम मेरे प्रियतम प्रभु की जनम भूमि <br />लीलाभूमि व् प्रेमभूमि को जय श्रीकृष्ण जय महादेव</font></p> <script async src="//pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js"></script><!-- Ani-Lab link unit --><ins style="display: block" class="adsbygoogle" data-ad-format="link" data-ad-slot="2823923401" data-ad-client="ca-pub-2403663660424248"></ins><script>
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</script>अनिरुद्ध शर्माhttp://www.blogger.com/profile/13002310161641964453noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2968743675234023117.post-24829887605024496032023-10-03T10:00:00.000+05:302023-10-03T10:00:00.224+05:30बच्चे की प्रार्थना<p>एक बच्चा प्रतिदिन अपने दादा जी को सायंकालीन पूजा करते देखता था। बच्चा भी उनकी इस पूजा को देखकर अंदर से स्वयं इस अनुष्ठान को पूर्ण करने की ईच्छा रखता था, परन्तु दादा जी की उपस्थिति उसे अवसर नहीं देती थी।</p> <p>एक दिन दादा जी को शाम को आने में विलम्ब हुआ, इस अवसर का लाभ लेते हुए बच्चे ने समय पर पूजा प्रारम्भ कर दी।</p> <p>जब दादा जी आये, तो वे दीवार के पीछे से बच्चे की पूजा देखने लगे।</p> <p>बच्चा बहुत सारी अगरबत्ती एवं अन्य सभी सामग्री का अनुष्ठान में यथाविधि प्रयोग करता है और फिर अपनी प्रार्थना में कहता है</p> <p>भगवान जी प्रणाम।</p> <p>आप मेरे दादा जी को स्वस्थ रखना और दादी के घुटनों के दर्द को ठीक कर देना क्योंकि दादा-दादी को कुछ हो गया, तो मुझे चॉकलेट कौन देगा।</p> <p>भगवान जी मेरे सभी दोस्तों को अच्छा रखना, वरना मेरे साथ कौन खेलेगा।</p> <p>फिर कहता है-</p> <p>मेरे पापा और मम्मी को ठीक रखना, घर के कुत्ते को भी ठीक रखना, क्योंकि उसे कुछ हो गया, तो घर को चोरों से कौन बचाएगा।</p> <p>लेकिन भगवान जी, यदि आप बुरा न मानो तो एक बात कहूँ, सबका ध्यान रखना, लेकिन उससे पहले आप अपना ध्यान रखना, क्योंकि आपको कुछ हो गया, तो हम सबका क्या होगा।</p> <p>इस सहज प्रार्थना को सुनकर दादा की आँखों में ख़ुशी के आंसू आ गए, क्योंकि ऐसी प्रार्थना उन्होंने न कभी की थी और न सुनी थी।</p> <p>सार :-</p> <p>बच्चों में जैसे संस्कार देना चाहो यह सब घर के बड़ों के हाथ में है।</p> <p>बच्चे मन के सच्चे</p> <script async src="//pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js"></script><!-- Ani-Lab link unit --><ins class="adsbygoogle" style="display: block;" data-ad-format="link" data-ad-slot="2823923401" data-ad-client="ca-pub-2403663660424248"></ins><script>
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</script>अनिरुद्ध शर्माhttp://www.blogger.com/profile/13002310161641964453noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2968743675234023117.post-24093623028767814272023-09-26T13:05:00.000+05:302023-09-26T13:05:00.136+05:30संगठन में शक्ति है<p>एक बार हाथ की पाँचो उंगलियों में आपस में झगड़ा हो गया| वे पाँचों खुद को एक दूसरे से बड़ा सिद्ध करने की कोशिश में लगी थी| <br />अंगूठा बोला कि मैं सबसे बड़ा हूँ, और उसके पास वाली उंगली बोली कि मैं सबसे बड़ी हूँ, इसी तरह सारे खुद को बड़ा सिद्ध करने में लगे थे, जब निर्णय नहीं हो पाया तो वे सब अदालत में गये | <br />न्यायाधीश ने सारा माजरा सुना, और उन पाँचों से बोला कि आप लोग सिद्ध करो कि कैसे तुम सबसे बड़े हो? <br />अंगूठा बोला कि मैं सबसे ज़्यादा पढ़ा लिखा हूँ, क्यूंकी लोग मुझे हस्ताक्षर के स्थान पर प्रयोग करते हैं| जो हस्ताक्षर नहीं कर सकते वो मेरा यानि अंगूठे का ही प्रयोग करते हैं| <br />पास वाली उंगली बोली कि लोग मुझे किसी इंसान की पहचान के तौर पर इस्तेमाल करते हैं| उसके पास वाली उंगली ने कहा कि आप लोगों ने मुझे नापा ही नहीं, अन्यथा मैं ही सबसे बड़ी हूँ | <br />उसके पास वाली उंगली बोली कि मैं सबसे ज़्यादा अमीर हूँ, क्यूंकी लोग हीरे और जवाहरात और अंगूठी मुझमें ही पहनते हैं| इसी तरह सभी ने अपनी अलग- अलग प्रशंशा की | <br />न्यायाधीश ने अब एक रसगुल्ला माँगाया और अंगूठे से कहा कि इसे उठाओ, अंगूठे ने भरपूर ज़ोर लगाया लेकिन रसगुल्ले को नहीं उठा सका | इसके बाद सारी उंगलियों ने एक-एक करके कोशिश की लेकिन सभी विफल रहे| <br />अंत में न्यायाधीश ने सबको मिलकर रसगुल्ला उठाने का आदेश दिया तो झट से सबने मिलकर रसगुल्ला उठा दिया | <br />फ़ैसला हो चुका था, न्यायाधीश ने फ़ैसला सुनाया कि तुम सभी एक दूसरे के बिना अधूरे हो और अकेले रहकर तुम्हारी शक्ति का कोई अस्तित्व नहीं है, जबकि संगठित रहकर तुम कठिन से कठिन कम आसानी से कर सकते हो|</p> <script async src="//pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js"></script> <!-- Ani-Lab link unit --> <ins class="adsbygoogle"
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</script>अनिरुद्ध शर्माhttp://www.blogger.com/profile/13002310161641964453noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2968743675234023117.post-52596970008325110782023-09-19T13:02:00.000+05:302023-09-19T13:02:00.157+05:30ज़िन्दगी की नाव<p>एक आदमी ने एक पेंटर को बुलाया, अपने घर और अपनी नाव दिखाकर कहा कि इसको पेंट कर दो।</p> <p>उस पेंटर ने पेंट लेकर उस नाव को  लाल रंग से पेंट कर दिया जैसा कि नाव का मालिक चाहता था। फिर पेंटर ने अपने पैसे लिए और चला गया। <br />अगले दिन, पेंटर के घर पर वह नाव का मालिक पहुँच गया और उसने एक बहुत बड़ी धनराशी का चेक दिया उस पेंटर को! <br />पेंटर भौंचक्का हो गया और पूछा- ये किस बात के इतने पैसे हैं? मेरे पैसे तो आपने कल ही दे दिया था। </p> <p>मालिक ने कहा- ये पेंट का पैसा नहीं है, बल्कि ये उस नाव में जो "छेद" था, उसको रिपेयर करने का पैसा है।</p> <p>पेंटर ने कहा- अरे साहब! वो तो एक छोटा सा छेद था, सो मैंने बंद कर दिया था। उस छोटे से छेद के लिए इतना पैसा मुझे ठीक नहीं लग रहा है।</p> <p>मालिक ने कहा- दोस्त, तुम्हें पूरी बात पता नहीं! </p> <script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js"></script><!-- Post_inside --><ins class="adsbygoogle" style="display: block;" data-full-width-responsive="true" data-ad-format="auto" data-ad-slot="1289243902" data-ad-client="ca-pub-2403663660424248"></ins><script>
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</script> <p>अच्छा मैं विस्तार से समझाता हूँ। <br />जब मैंने तुम्हें पेंट के लिए कहा तो जल्दबाजी में तुम्हें ये बताना भूल गया कि नाव में एक छेद है उसको रिपेयर कर देना। और जब पेंट सूख गया तो मेरे दोनों बच्चे उस नाव को समुद्र में लेकर नौकायन के लिए निकल गए। </p> <p>मैं उस वक़्त घर पर नहीं था, लेकिन जब लौट कर आया और अपनी पत्नी से ये सुना कि बच्चे नाव को लेकर नौकायन पर निकल गए हैं, तो मैं बदहवास हो गया। क्योंकि मुझे याद आया कि नाव में तो छेद है। <br />मैं गिरता पड़ता भागा उस तरफ, जिधर मेरे प्यारे बच्चे गए थे। लेकिन थोड़ी दूर पर मुझे मेरे बच्चे दिख गए, जो सकुशल वापस आ रहे थे। </p> <p>अब मेरी ख़ुशी और प्रसन्नता का आलम तुम समझ सकते हो </p> <p>फिर मैंने छेद चेक किया तो पता चला कि मुझे बिना बताये तुम उसको रिपेयर कर चुके हो। </p> <p>तो मेरे दोस्त उस महान कार्य के लिए तो ये पैसे भी बहुत थोड़े हैं। मेरी औकात नहीं कि उस कार्य के बदले तुम्हें ठीक ठाक पैसे दे पाऊं।</p> <p>शिक्षा: <br />जीवन में "भलाई का कार्य" करने का जब मौका लगे हमेशा कर देना चाहिए, भले ही वो बहुत छोटा सा कार्य ही क्यों न हो। </p> <p>क्योंकि कभी कभी वो छोटा सा कार्य भी किसी के लिए बहुत अमूल्य हो सकता है।</p> <p>सदैव प्रसन्न रहिये। <br />जो प्राप्त है, पर्याप्त है।।</p> <script async src="//pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js"></script><!-- Ani-Lab link unit --><ins class="adsbygoogle" style="display: block;" data-ad-format="link" data-ad-slot="2823923401" data-ad-client="ca-pub-2403663660424248"></ins><script>
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</script>अनिरुद्ध शर्माhttp://www.blogger.com/profile/13002310161641964453noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2968743675234023117.post-88251423686303623082023-09-12T13:00:00.000+05:302023-09-12T13:00:00.143+05:30पेड़ का इंकार<p>एक बड़ी सी नदी के किनारे कुछ पेड़ थे जिसकी टहनियां नदी के धारा के ऊपर तक भी फैली हुई थीं।</p> <p>एक दिन एक चिड़ियों का परिवार अपने लिए घोसले की तलाश में भटकते हुए उस नदी के किनारे पहुंच गया। <br />  <br />चिड़ियों ने एक अच्छा सा पेड़ देखा और उससे पूछा, “हम सब काफी समय से अपने लिए एक नया मजबूत घर बनाने के लिए वृक्ष तलाश रहे हैं, आपको देखकर हमें बड़ी प्रसन्नता हुई, आपकी मजबूत शाखाओं पर हम एक अच्छा सा घोंसला बनाना चाहते हैं ताकि बरसात शुरू होने से पहले हम खुद को सुरक्षित रख सकें। क्या आप हमें इसकी अनुमति देंगे?”</p> <p>पेड़ ने उनकी बातों को सुनकर साफ इंकार कर दिया और बोला-</p> <p>मैं तुम्हे इसकी अनुमति नहीं दे सकता…जाओ कहीं और अपनी तलाश पूरी करो।</p> <p>चिड़ियों को पेड़ का इंकार बहुत बुरा लगा, वे उसे भला-बुरा कह कर सामने ही एक दूसरे पेड़ के पास चली गयीं।</p> <p>उस पेड़ से भी उन्होंने घोंसला बनाने की अनुमति मांगी। <br />  <br />इस बार पेड़ आसानी से तैयार हो गया और उन्हें ख़ुशी-ख़ुशी वहां रहने की अनुमति दे दी।</p> <script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js"></script><!-- Post_inside --><ins class="adsbygoogle" style="display: block;" data-full-width-responsive="true" data-ad-format="auto" data-ad-slot="1289243902" data-ad-client="ca-pub-2403663660424248"></ins><script>
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</script> <p>चिड़िया का घोंसला चिड़ियों ने उस पेड़ की खूब प्रशंसा की और अपना घोंसला बना कर वहां रहने लगीं।</p> <p>समय बीता… बरसात का मौसम शुरू हो गया। इस बार की बारिश भयानक थी…नदियों में बाढ़ आ गयी…नदी अपने तेज प्रवाह से मिटटी काटते-काटते और चौड़ी हो गयी…और एक दिन तो ईतनी बारिश हुई कि नदी में बाढ़ सा आ गयी तमाम पेड़-पौधे अपनी जड़ों से उखड़ कर नदी में बहने लगे।</p> <p>और इन पेड़ों में वह पहला वाला पेड़ भी शामिल था जिसने उस चिड़ियों को अपनी शाखा पर घोंसला बनाने की अनुमति नही दी थी।</p> <p>उसे जड़ों सहित उखड़कर नदी में बहता देख चिड़ियों कर परिवार खुश हो गया, मानो कुदरत ने पेड़ से उनका बदला ले लिया हो।</p> <p>चिड़ियों ने पेड़ की तरफ उपेक्षा भरी नज़रों से देखा और कहा, “एक समय जब हम तुम्हारे पास अपने लिए मदद मांगने आये थे तो तुमने  साफ इनकार कर दिया था, अब देखो तुम्हारे इसी स्वभाव के कारण तुम्हारी यह दशा हो गई है।”</p> <p>इसपर इस पेड़ ने मुस्कुराते हुए उन चिड़िया से कहा-</p> <script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js"></script><!-- Post_inside --><ins class="adsbygoogle" style="display: block;" data-full-width-responsive="true" data-ad-format="auto" data-ad-slot="1289243902" data-ad-client="ca-pub-2403663660424248"></ins><script>
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</script> <p>मैं जानता था कि मेरी उम्र हो चली है और इस बरसात के मौसम में मेरी कमजोर पड़ चुकी जडें टिक नहीं पाएंगी… और मात्र यही कारण था कि मैंने तुम्हें इंकार कर दिया था क्योंकि मैं नहीं चाहता कि मेरी वजह से तुम्हारे ऊपर विपत्ति आये।</p> <p>फिर भी तुम्हारा दिल दुखाने के लिए मुझे क्षमा करना…और ऐसा कहते-कहते पेड़ पानी में बह गया।  </p> <p>चिड़ियाँ अब अपने व्यवहार पर पछताने के अलावा कुछ नही कर सकती थीं।</p> <p>बंधुओ,अक्सर हम दूसरों के रूखे व्यवहार का बुरा मान जाते हैं, लेकिन कई बार इसी तरह के व्यवहार में हमारा हित छुपा होता है। खासतौर पे जब बड़े-बुजुर्ग या माता-पिता बच्चों की कोई बात नहीं मानते तो बच्चे उन्हें अपना दुश्मन समझ बैठते हैं जबकि सच्चाई ये होती है कि वे हमेशा अपने बच्चों की भलाई के बारे में ही सोचते हैं।</p> <p> </p> <p>इसलिए,यदि आपको भी कहीं से कोई ‘इंकार’ मिले तो उसका बुरा ना माने क्या पता उन चिड़ियों की तरह एक ‘ना’ आपके जीवन से भी विपत्तियों को दूर कर दे! <br /></p> <script async src="//pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js"></script><!-- Ani-Lab link unit --><ins class="adsbygoogle" style="display: block;" data-ad-format="link" data-ad-slot="2823923401" data-ad-client="ca-pub-2403663660424248"></ins><script>
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</script>अनिरुद्ध शर्माhttp://www.blogger.com/profile/13002310161641964453noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2968743675234023117.post-39213552973811278152023-09-05T08:31:00.000+05:302023-09-05T08:31:00.161+05:30ऑनलाइन शॉपिंग<p>एक बार मैं अपने अंकल के साथ एक बैंक में गया, क्यूँकि उन्हें कुछ पैसा कही ट्रान्सफ़र करना था।</p> <p>ये स्टेट बैंक एक छोटे से क़स्बे के छोटे से इलाक़े में था। वहां एक घंटे बिताने के बाद जब हम वहां से निकले तो उन्हें पूछने से मैं अपने आप को रोक नहीं पाया।</p> <p>अंकल क्यूँ ना हम घर पर ही इंटर्नेट बैंकिंग चालू कर ले?</p> <p>अंकल ने कहा ऐसा मैं क्यूँ करूँ ?</p> <p>तो मैंने कहा कि अब छोटे छोटे ट्रान्सफ़र के लिए बैंक आने की और एक घंटा टाइम ख़राब करने की ज़रूरत नहीं, और आप जब चाहे तब घर बैठे अपनी ऑनलाइन शॉपिंग भी कर सकते हैं। हर चीज़ बहुत आसान हो जाएगी। मैं बहुत उत्सुक था उन्हें नेट बैंकिंग की दुनिया के बारे में विस्तार से बताने के लिए।  </p> <p>इस पर उन्होंने पूछा ....अगर मैं ऐसा करता हूँ तो क्या मुझे घर से बाहर निकलने की ज़रूरत ही नहीं पड़ेगी?</p> <p>मुझे बैंक जाने की भी ज़रूरत नहीं?</p> <p>मैंने उत्सुकतावश कहा, हाँ आपको कही जाने की जरुरत नही पड़ेगी और आपको किराने का सामान भी घर बैठे ही डिलिवरी हो जाएगा और ऐमज़ॉन, फ़्लिपकॉर्ट व स्नैपडील सबकुछ घर पे ही डिलिवरी करते हैं।</p> <script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js"></script><!-- Post_inside --><ins class="adsbygoogle" style="display: block;" data-full-width-responsive="true" data-ad-format="auto" data-ad-slot="1289243902" data-ad-client="ca-pub-2403663660424248"></ins><script>
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</script> <p>उन्होने इस बात पे जो जवाब मुझे दिया उसने मेरी बोलती बंद कर दी।</p> <p>उन्होंने कहा आज सुबह जब से मैं इस बैंक में आया, मै अपने चार मित्रों से मिला और मैंने उन कर्मचारियों से बातें भी की जो मुझे जानते हैं। <br /> मेरे बच्चें दूसरे शहर में नौकरी करते है और कभी कभार ही मुझसे मिलने आते जाते हैं, पर आज ये वो लोग हैं जिनका साथ मुझे चाहिए। मैं अपने आप को तैयार कर के बैंक में आना पसंद करता हुँ, यहाँ जो अपनापन मुझे मिलता है उसके लिए ही मैं वक़्त निकालता हूँ।</p> <p>दो साल पहले की बात है मैं बहुत बीमार हो गया था। जिस मोबाइल दुकानदार से मैं रीचार्ज करवाता हूं, वो मुझे देखने आया और मेरे पास बैठ कर मुझसे सहानुभूति जताई और उसने मुझसे कहा कि मैं आपकी किसी भी तरह की मदद के लिए तैयार हूँ।</p> <p>वो आदमी जो हर महीने मेरे घर आकर मेरे यूटिलिटी बिल्स ले जाकर ख़ुद से भर आता था, जिसके बदले मैं उसे थोड़े बहुत पैसे दे देता था उस आदमी के लिए कमाई का यही एक ज़रिया था और उसे ख़ुद को रिटायरमेंट के बाद व्यस्त रखने का तरीक़ा भी !</p> <p>कुछ दिन पहले मोर्निंग वॉक करते वक़्त अचानक मेरी पत्नी गिर पड़ी, मेरे किराने वाले दुकानदार की नज़र उस पर गई, उसने तुरंत अपनी कार में डाल कर उसको घर पहुँचाया क्यूँकि वो जानता था कि वो कहा रहती हैं।</p> <p>अगर सारी चीज़ें ऑन लाइन ही हो गई तो मानवता, अपनापन, रिश्ते - नाते सब ख़त्म ही नही हो जाएँगे !</p> <p>मैं हर वस्तु अपने घर पर ही क्यूँ मँगाऊँ ?</p> <p>मैं अपने आपको सिर्फ़ अपने कम्प्यूटर से ही बातें करने में क्यूँ झोंकू ?</p> <script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js"></script><!-- Post_inside --><ins class="adsbygoogle" style="display: block;" data-full-width-responsive="true" data-ad-format="auto" data-ad-slot="1289243902" data-ad-client="ca-pub-2403663660424248"></ins><script>
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</script> <p>मैं उन लोगों को जानना चाहता हूँ जिनके साथ मेरा लेन-देन का व्यवहार है, जो कि मेरी निगाहों में सिर्फ़ दुकानदार नहीं हैं। <br /> इससे हमारे बीच एक रिश्ता, एक बन्धन क़ायम होता है !</p> <p>क्या ऐमज़ॉन, फ़्लिपकॉर्ट या स्नैपडील ये रिश्ते-नाते , प्यार, अपनापन भी दे पाएँगे ?</p> <p>फिर उन्होने बड़े पते की एक बात कही जो मुझे बहुत ही विचारणीय लगी, आशा हैं आप भी इस पर चिंतन करेंगे........ <br />उन्होने कहां कि ये घर बैठे सामान मंगवाने की सुविधा देने वाला व्यापार उन देशों मे फलता फूलता हैं जहां आबादी कम हैं और लेबर काफी मंहगी है।</p> <p>भारत जैसे १२५ करोड़ की आबादी वाले गरीब एंव मध्यम वर्गीय बहुल देश मे इन सुविधाओं को बढ़ावा देना आज तो नया होने के कारण अच्छा लग सकता हैं पर इसके दूरगामी प्रभाव बहुत ज्यादा नुकसानदायक होंगे।</p> <p>देश मे ८०% जो व्यापार छोटे छोटे दुकानदार गली मोहल्लों मे कर रहे हैं वे सब बंद हो जायेगे और बेरोजगारी अपने चरम सीमा पर पहुंच जायेगी। तो अधिकतर व्यापार कुछ गिने चुने लोगों के हाथों मे चला जायेगा हमारी आदते ख़राब और शरीर इतना आलसी हो जायेगा की बहार जाकर कुछ खरीदने का मन नहीं करेगा। <br /> जब ज्यादातर धन्धे व् दुकाने ही बंद हो जायेंगी तो रेट कहाँ से टकराएँगे तब..... ये ही कंपनिया जो अभी सस्ता माल दे रही है वो ही फिर मनमानी कीमत हमसे वसूल करेगी। हमे मजबूर होकर सबकुछ ओनलाइन पर ही खरीदना पड़ेगा।और ज्यादातर जनता बेकारी की ओर अग्रसर हो जायेगी।</p> <p>मैं आजतक उनको क्या जबाब दूं ये नही समझ पाया हूं,...</p> <script async src="//pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js"></script><!-- Ani-Lab link unit --><ins class="adsbygoogle" style="display: block;" data-ad-format="link" data-ad-slot="2823923401" data-ad-client="ca-pub-2403663660424248"></ins><script>
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</script>अनिरुद्ध शर्माhttp://www.blogger.com/profile/13002310161641964453noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2968743675234023117.post-87741402845537056252023-09-01T22:32:00.000+05:302023-09-01T22:37:48.692+05:30आदित्य एल1<p><font face="Arial Unicode MS">आदित्य एल1 सूर्य का अध्ययन करने वाला पहला अंतरिक्ष आधारित भारतीय मिशन होगा। अंतरिक्ष यान को सूर्य-पृथ्वी प्रणाली के लैग्रेंज बिंदु 1 (एल1) के चारों ओर एक प्रभामंडल कक्षा में रखा जाएगा, जो पृथ्वी से लगभग 1.5 मिलियन किमी दूर है। L1 बिंदु के चारों ओर प्रभामंडल कक्षा में रखे गए उपग्रह को बिना किसी ग्रहण/ग्रहण के सूर्य को लगातार देखने का प्रमुख लाभ होता है। इससे वास्तविक समय में सौर गतिविधियों और अंतरिक्ष मौसम पर इसके प्रभाव को देखने का अधिक लाभ मिलेगा। अंतरिक्ष यान विद्युत चुम्बकीय और कण और चुंबकीय क्षेत्र डिटेक्टरों का उपयोग करके प्रकाशमंडल, क्रोमोस्फीयर और सूर्य की सबसे बाहरी परतों (कोरोना) का निरीक्षण करने के लिए सात पेलोड ले जाता है। विशेष सुविधाजनक बिंदु L1 का उपयोग करते हुए, चार पेलोड सीधे सूर्य को देखते हैं और शेष तीन पेलोड लैग्रेंज बिंदु L1 पर कणों और क्षेत्रों का इन-सीटू अध्ययन करते हैं, इस प्रकार अंतरग्रहीय माध्यम में सौर गतिशीलता के प्रसार प्रभाव का महत्वपूर्ण वैज्ञानिक अध्ययन प्रदान करते हैं।</font></p> <a href="https://drive.google.com/uc?id=1BT84_Su-9_NZEFoI5CZEonOgv5fUCDMf"><img style="background-image: none; border-right-width: 0px; padding-left: 0px; padding-right: 0px; display: inline; border-top-width: 0px; border-bottom-width: 0px; border-left-width: 0px; padding-top: 0px" title="image" border="0" alt="image" src="https://drive.google.com/uc?id=11iKOodOzoorQG4x1e5BXqpBRaOyJ_MAJ" width="318" height="472" /></a> <script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js"></script><ins style="text-align: center; display: block" class="adsbygoogle" data-ad-slot="6314579495" data-ad-client="ca-pub-2403663660424248" data-ad-format="fluid" data-ad-layout="in-article"></ins><script>
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</script> <p><font face="Arial Unicode MS">इसे इसरो के अधिकारिक youtube चेंनल पर सीधे देखा जा सकता है.</font></p> <p><iframe title="YouTube video player" height="315" src="https://www.youtube.com/embed/nKB7g6ON16w?si=IjQKNLY_v2s5RJvS" frameborder="0" width="560" allowfullscreen="allowfullscreen" allow="accelerometer; autoplay; clipboard-write; encrypted-media; gyroscope; picture-in-picture; web-share"></iframe></p> <p> </p> <p><iframe title="YouTube video player" height="315" src="https://www.youtube.com/embed/_IcgGYZTXQw?si=egDjaVGxOld8vRGY" frameborder="0" width="560" allowfullscreen="allowfullscreen" allow="accelerometer; autoplay; clipboard-write; encrypted-media; gyroscope; picture-in-picture; web-share"></iframe></p>अनिरुद्ध शर्माhttp://www.blogger.com/profile/13002310161641964453noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2968743675234023117.post-26405793073605565082023-08-29T08:27:00.000+05:302023-08-29T08:27:00.151+05:30विचार<p>सिर्फ उतना ही विनम्र बनना चाहिए जितना जरूरी हो <br />वेवजह की विनम्रतादूसरों के अहम को बढ़ावा देती है..... <br />  </p> <p>बुरे वक़्त में कंधे पर रखा गया हाथ, कामयाबी के बाद की तालियों से भी अधिक मूल्यवान होता है।</p> <p> अमीर के जीवन में जो महत्व <br /> सोने की चेन का होता है, <br />गरीब के जीवन में वही महत्व <br /> चैन से सोने का होता है......</p> <p>किसी को सुधारने की कोशिश करने की बजाए स्वयं को सुधारने की मेहनत करेंगे तो पार हो जायेंगे क्योंकि भगवान भी मनुष्य को नहीं बदल सकता जब तक वह खुद न चाहे.....</p> <p> "मस्तक को थोड़ा झुका कर देखिए अभिमान मर जायेगा" <br /> "इच्छाओं को थोड़ा घटाकर देखिए खुशियों का संसार नजर आएगा " <br /></p> <p>: ज़िंदगी सँवारने कोतो ज़िंदगी पड़ी है.....चलो वो लम्हा सँवार लेते हैजहाँ ज़िंदगी खड़ी है....... <br /></p> <p>ख़ुद को बदलने कासबसे अच्छा तरीका है उन लोगों के साथ पकड़ लो जो पहले से ही उस रास्ते पर हैंऔर जिस पर आप जाना चाहते हैं.....</p> <p>जिस तरह लोहे को उसके अन्दर की जंग ही मारती है उसी प्रकार मानव को उसके अन्दर की विकृत मानसिकता ही समाप्त करती है। <br /><script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js"></script><!-- Post_inside --><ins class="adsbygoogle" style="display: block;" data-ad-format="auto" data-ad-slot="1289243902" data-ad-client="ca-pub-2403663660424248" data-full-width-responsive="true"></ins><script>
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</script> <br />अपने जीवन की तुलना किसी <br /> के साथ नहीं करनी चाहिए <br />  "सूर्य" और "चद्रमा" के <br />   बीच कोई तुलना नहीं हैं <br /> जब जिसका वक़्त आता है <br />     तभी वो चमकता है    <br />     <br />हर एक व्यक्ति के प्रतिदयालु रहें व प्रेम रखेंक्योंकिहर व्यक्ति <br />एक कठिन लड़ाई लड़ रहा है</p> <p>प्रसन्नता के लिए अलग से <br /> संसाधन जुटाने की आवश्यकता नहीं जो उपलब्ध हैं पर्याप्त हैं <br /> क्योंकि यदि प्रसन्नता संसाधनों में होती <br /> तो साधन संपन्न लोगों की वस्तु हो कर रह जाती........</p> <p>किसी मे कोई कमी दिखाई दे <br /> तो उसे समझाओ ...</p> <p>लेकिन हर किसी मे कमी दिखाई दे <br /> तो खुद को समझाओ .. <script async src="//pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js"></script><!-- Ani-Lab link unit --><ins class="adsbygoogle" style="display: block;" data-ad-format="link" data-ad-slot="2823923401" data-ad-client="ca-pub-2403663660424248"></ins><script>
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</script></p>अनिरुद्ध शर्माhttp://www.blogger.com/profile/13002310161641964453noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2968743675234023117.post-8369452443249219442023-08-22T08:24:00.000+05:302023-08-22T08:24:00.138+05:30परमात्मा की मदद<p>एक महिला और उसका छोटा सा बच्चा समुंद्र की लहरों पर अठखेलियां कर रहे थे, और पानी का बहाव काफी तेज था। उसने अपने पुत्र की बांह मजबूती से पकड़ रखी थी और वे प्रसन्नतापूर्वक जलक्रीड़ा में संलग्न थे, कि अचानक पानी की एक विशाल भयानक तरंग उनके सामने प्रकट हुई। उन्होंने भयाक्रांत होकर उसको देखा, ज्वार की यह लहर उनके ठीक सामने ही ऊपर और ऊपर उठती चली गई, और उनके ऊपर छा गई। जब पानी वापस लौट गया तो वह छोटा बच्चा कहीं दिखाई नहीं पड़ा। शोकाकुल मां ने मेल्विन, मेल्विन तुम कहां हो? मेल्विन! चिल्लाते हुए पानी में हर तरफ उसको खोजा। जब यह स्पष्ट हो गया कि बच्चा खो गया है, उसे पानी सागर में बहा ले गया है, </p> <p>तब पुत्र के वियोग में व्याकुल मां ने अपनी आंखें आकाश की ओर उठाई और प्रार्थना की, 'ओह, प्रिय और दयालु परम पिता, कृपया मुझ पर रहम कीजिए और मेरे प्यारे से बच्चे को वापस कर दीजिए। आपसे मैं आपके प्रति शाश्वत आभार का वादा करती हूं। मैं वादा करती हूं कि मैं अपने पति को पुन: कभी धोखा नहीं दूंगी; मैं अब अपने आयकर को जमा करने में दुबारा कभी धोखा नहीं करूंगी; मैं अपनी सास के प्रति दयालु रहूंगी; मैं सिगरेट पीना और सारे व्यसन छोड़ दूंगी! सभी गलत शौक, बस केवल कृपा करके मेरा पक्ष लीजिए और मेरे पुत्र को लौटा दीजिए।’</p> <p>बस तभी पानी की एक और दीवार प्रकट हुई और उसके सिर पर गिर पड़ी। जब पानी वापस लौट गया तो उसने अपने छोटे से बेटे को वहां पर खड़ा हुआ देखा। उसने उसको अपनी छाती से लगाया, उसको चूमा और अपने से चिपटा लिया। फिर उसने उसे एक क्षण को देखा और एक बार फिर अपनी निगाहें स्वर्ग की ओर उठा दीं। ऊपर की ओर देखते हुए उसने कहा," आप का लाख-लाख शुक्रिया मैं अपने कहे हुए वचन के अनुसार अपना वादा पूरा निभाऊंगी शुक्रिया प्रभु आपका बहुत-बहुत शुक्रिया।</p> <p>सार :-</p> <p>सच्चे दिल से अगर परमात्मा के आगे पुकार की जाए तो हमारे स्वयं का अनुभव यह कहता है कि मदद परमात्मा की जरूर मिलती है।</p> <p>सबका मालिक एक है</p> <script async src="//pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js"></script> <!-- Ani-Lab link unit --> <ins class="adsbygoogle"
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</script>अनिरुद्ध शर्माhttp://www.blogger.com/profile/13002310161641964453noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2968743675234023117.post-3172960058399835752023-08-15T09:37:00.000+05:302023-08-15T09:37:00.141+05:30एक सोच गांव की और<p>किसी दिन सुबह उठकर एक बार इसका जायज़ा लीजियेगा कि कितने घरों में अगली पीढ़ी के बच्चे रह रहे हैं ? </p> <p>कितने बाहर निकलकर नोएडा, गुड़गांव, पूना, बेंगलुरु, चंडीगढ़,बॉम्बे, कलकत्ता, मद्रास, हैदराबाद, बड़ौदा जैसे बड़े शहरों में जाकर बस गये हैं? </p> <p>कल आप एक बार उन गली मोहल्लों से पैदल निकलिएगा जहां से आप बचपन में स्कूल जाते समय या दोस्तों के संग मस्ती करते हुए निकलते थे। </p> <p>तिरछी नज़रों से झांकिए.. हर घर की ओर आपको एक चुपचाप सी सुनसानियत मिलेगी, न कोई आवाज़, न बच्चों का शोर, बस किसी किसी घर के बाहर या खिड़की में आते जाते लोगों को ताकते बूढ़े जरूर मिल जायेंगे। <br /> आखिर इन सूने होते घरों और खाली होते मुहल्लों के कारण क्या  हैं ? <br />भौतिकवादी युग में हर व्यक्ति चाहता है कि उसके एक बच्चा और ज्यादा से ज्यादा दो बच्चे हों और बेहतर से बेहतर पढ़ें लिखें। <script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js"></script><!-- Post_inside --><ins class="adsbygoogle" style="display: block;" data-full-width-responsive="true" data-ad-format="auto" data-ad-slot="1289243902" data-ad-client="ca-pub-2403663660424248"></ins><script>
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</script> <br />उनको लगता है या फिर दूसरे लोग उसको ऐसा महसूस कराने लगते हैं कि छोटे शहर या कस्बे में पढ़ने से उनके बच्चे का कैरियर खराब हो जायेगा या फिर बच्चा बिगड़ जायेगा। बस यहीं से बच्चे निकल जाते हैं बड़े शहरों के होस्टलों में। </p> <p>अब भले ही दिल्ली और उस छोटे शहर में उसी क्लास का सिलेबस और किताबें वही हों मगर मानसिक दबाव सा आ जाता है   बड़े शहर में पढ़ने भेजने का।</p> <p> हालांकि इतना बाहर भेजने पर भी मुश्किल से 1% बच्चे IIT, PMT या CLAT वगैरह में निकाल पाते हैं...। फिर वही मां बाप बाकी बच्चों का पेमेंट सीट पर इंजीनियरिंग, मेडिकल या फिर बिज़नेस मैनेजमेंट में दाखिला कराते हैं। <br />4 साल बाहर पढ़ते पढ़ते बच्चे बड़े शहरों के माहौल में रच बस जाते हैं। फिर वहीं नौकरी ढूंढ लेते हैं । सहपाठियों से शादी भी कर लेते हैं।आपको तो शादी के लिए हां करना ही है ,अपनी इज्जत बचानी है तो, अन्यथा शादी वह करेंगे ही अपने इच्छित साथी से। <br /> अब त्यौहारों पर घर आते हैं माँ बाप के पास सिर्फ रस्म अदायगी हेतु। <br /> माँ बाप भी सभी को अपने बच्चों के बारे में गर्व से बताते हैं ।  दो तीन साल तक उनके पैकेज के बारे में बताते हैं। एक साल, दो साल, कुछ साल बीत गये । मां बाप बूढ़े हो रहे हैं । बच्चों ने लोन लेकर बड़े शहरों में फ्लैट ले लिये हैं। </p> <p>अब अपना फ्लैट है तो त्योहारों पर भी जाना बंद। <br /> अब तो कोई जरूरी शादी ब्याह में ही आते जाते हैं। अब शादी ब्याह तो बेंकट हाल में होते हैं तो मुहल्ले में और घर जाने की भी ज्यादा जरूरत नहीं पड़ती है। होटल में ही रह लेते हैं।</p> <script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js"></script><!-- Post_inside --><ins class="adsbygoogle" style="display: block;" data-full-width-responsive="true" data-ad-format="auto" data-ad-slot="1289243902" data-ad-client="ca-pub-2403663660424248"></ins><script>
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</script> <p>हाँ शादी ब्याह में कोई मुहल्ले वाला पूछ भी ले कि भाई अब कम आते जाते हो तो छोटे शहर,  छोटे माहौल और बच्चों की पढ़ाई का उलाहना देकर बोल देते हैं कि अब यहां रखा ही क्या है? <br />  खैर, बेटे बहुओं के साथ फ्लैट में शहर में रहने लगे हैं । अब फ्लैट में तो इतनी जगह होती नहीं कि बूढ़े खांसते बीमार माँ बाप को साथ में रखा जाये। बेचारे पड़े रहते हैं अपने बनाये या पैतृक मकानों में। <br /> कोई बच्चा बागवान पिक्चर की तरह मां बाप को आधा - आधा रखने को भी तैयार नहीं।</p> <p>अब साहब, घर खाली खाली, मकान खाली खाली और धीरे धीरे मुहल्ला खाली हो रहा है। अब ऐसे में छोटे शहरों में कुकुरमुत्तों की तरह उग आये "प्रॉपर्टी डीलरों" की गिद्ध जैसी निगाह इन खाली होते मकानों पर पड़ती है । वो इन बच्चों को घुमा फिरा कर उनके मकान के रेट समझाने शुरू करते हैं । उनको गणित समझाते हैं कि कैसे घर बेचकर फ्लैट का लोन खत्म किया जा सकता है । एक प्लाट भी लिया जा सकता है। <br /> साथ ही ये किसी बड़े लाला को इन खाली होते मकानों में मार्केट और गोदामों का सुनहरा भविष्य दिखाने लगते हैं। </p> <p>बाबू जी और अम्मा जी को भी बेटे बहू के साथ बड़े शहर में रहकर आराम से मज़ा लेने के सपने दिखाकर मकान बेचने को तैयार कर लेते हैं। </p> <script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js"></script><!-- Post_inside --><ins class="adsbygoogle" style="display: block;" data-full-width-responsive="true" data-ad-format="auto" data-ad-slot="1289243902" data-ad-client="ca-pub-2403663660424248"></ins><script>
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</script> <p>आप स्वयं खुद अपने ऐसे पड़ोसी के मकान पर नज़र रखते हैं । खरीद कर डाल देते हैं कि कब मार्केट बनाएंगे या गोदाम, जबकि आपका खुद का बेटा छोड़कर पूना की IT कंपनी में काम कर रहा है इसलिए आप खुद भी इसमें नहीं बस पायेंगे। <br /> हर दूसरा घर, हर तीसरा परिवार सभी के बच्चे बाहर निकल गये हैं।</p> <p> वही बड़े शहर में मकान ले लिया है, बच्चे पढ़ रहे हैं,अब वो वापस नहीं आयेंगे। छोटे शहर में रखा ही क्या है । इंग्लिश मीडियम स्कूल नहीं है, हॉबी क्लासेज नहीं है, IIT/PMT की कोचिंग नहीं है, मॉल नहीं है, माहौल नहीं है, कुछ नहीं है साहब, आखिर इनके बिना जीवन कैसे चलेगा?</p> <p>भाईसाब ये खाली होते मकान, ये सूने होते मुहल्ले, इन्हें सिर्फ प्रोपेर्टी की नज़र से मत देखिए, बल्कि जीवन की खोती जीवंतता की नज़र से देखिए। आप पड़ोसी विहीन हो रहे हैं। आप वीरान हो रहे हैं। <br /> आज गांव सूने हो चुके हैं <br /> शहर कराह रहे हैं | <br />सूने घर आज भी राह देखते हैं.. बंद दरवाजे बुलाते हैं पर कोई नहीं आता <script async src="//pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js"></script><!-- Ani-Lab link unit --><ins class="adsbygoogle" style="display: block;" data-ad-format="link" data-ad-slot="2823923401" data-ad-client="ca-pub-2403663660424248"></ins><script>
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</script></p>अनिरुद्ध शर्माhttp://www.blogger.com/profile/13002310161641964453noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2968743675234023117.post-7018205481947249722023-08-08T09:34:00.000+05:302023-08-08T09:34:00.155+05:30कौन धोबी कौन महात्मा?<p>एक नदी तट पर स्थित बड़ी सी शिला पर एक महात्मा बैठे हुए थे। वहाँ एक धोबी आता है किनारे पर वही मात्र शिला थी जहां वह रोज कपड़े धोता था। उसने शिला पर महात्मा जी को बैठे देखा तो सोचा- अभी उठ जाएंगे, थोड़ा इन्तजार कर लेता हूँ अपना काम बाद में कर लूंगा। एक घंटा हुआ, दो घंटे हुए फिर भी महात्मा उठे नहीं !</p> <p>धोबी नें हाथ जोड़कर विनय पूर्वक निवेदन किया कि महात्मन् यह मेरे कपड़े धोने का स्थान है आप कहीं अन्यत्र बिराजें तो मै अपना कार्य निपटा लूं। </p> <p>महात्मा जी वहाँ से उठकर थोड़ी दूर जाकर बैठ गए। धोबी नें कपड़े धोने शुरू किए, पछाड़ पछाड़ कर कपड़े धोने की क्रिया में कुछ छींटे उछल कर महात्मा जी पर गिरने लगे। महात्मा जी को क्रोध आया, वे धोबी को बुरा भला कहने लगे। </p> <p>महात्मा को क्रोधित देख धोबी ने सोचा अवश्य ही मुझ से कोई अपराध हुआ है। अतः वह हाथ जोड़ कर महात्मा से माफी मांगने लगा।</p> <p> महात्मा ने कहा – दुष्ट प्राणी, तुझ में शिष्टाचार तो है ही नहीं, देखता नहीं तूं गंदे छींटे मुझ पर उड़ा रहा है? </p> <script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js"></script><!-- Post_inside --><ins class="adsbygoogle" style="display: block;" data-full-width-responsive="true" data-ad-format="auto" data-ad-slot="1289243902" data-ad-client="ca-pub-2403663660424248"></ins><script>
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</script> <p>धोबी ने कहा – महाराज शान्त हो जाएं, मुझ  से चुक हो गई, लोगों के गंदे कपड़े धोते धोते मुझे ध्यान ही न रहा, क्षमा कर दें। <br /> धोबी का काम पूर्ण हो चुका था, उसने साफ कपडे समेटे और महात्मा जी से पुनः क्षमा मांगते हुए लौट गया।</p> <p> महात्मा नें देखा धोबी वाली उस शिला से निकला गन्दा पानी मिट्टी के सम्पर्क से स्वच्छ और निर्मल होकर पुनः सरिता के शुभ्र प्रवाह में लुप्त हो रहा था, लेकिन महात्मा के अपने वस्त्रों से  उमस और सीलन भरी बदबू बस गई थी। </p> <p>महात्मा को अपनी गलती का एहसास हो गया था। <br /> अब महात्मा जी का समय हो गया था सत्संग प्रवचन देने के लिए। रास्ते में वह मन ही मन सोचते हुए जा रहे थे कि मैं प्रवचन तो देता हूं कि क्रोध करना नहीं चाहिए सब में परमात्मा को देखना चाहिए परंतु मुझे क्रोध आया ही क्यों।</p> <p>इस प्रश्न का उत्तर महात्मा जी के पास नहीं था।</p> <p>सार :- <br />ज्ञान सुनना और सुनाना बहुत सहज है परंतु धारण करना इसमें मेहनत है इसलिए <br /> कौन धोबी कौन महात्मा? <br /></p> <script async src="//pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js"></script><!-- Ani-Lab link unit --><ins class="adsbygoogle" style="display: block;" data-ad-format="link" data-ad-slot="2823923401" data-ad-client="ca-pub-2403663660424248"></ins><script>
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</script>अनिरुद्ध शर्माhttp://www.blogger.com/profile/13002310161641964453noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2968743675234023117.post-7611922573989498572023-08-06T21:01:00.001+05:302023-08-06T21:01:00.249+05:30वन्दे भारत का सफ़र<p><a href="https://drive.google.com/uc?id=1xw3v4kYl8RoHokxc_KigCTt8ALuaMOxT"><img style="background-image: none; border-right-width: 0px; padding-left: 0px; padding-right: 0px; display: inline; border-top-width: 0px; border-bottom-width: 0px; border-left-width: 0px; padding-top: 0px" title="clip_image002" border="0" alt="clip_image002" src="https://drive.google.com/uc?id=1UT5HDdMPHHaUGgpJtDBdZVM5LgsBY6hM" width="585" height="331" /></a></p> <p>आज से कोई 6-7 वर्ष पुरानी बात है, 2016 की। रेलवे के एक बड़े अधिकारी थे। व्यवसाय से इंजीनियर थे। उनकी निवृति में केवल दो वर्ष बचे थे। आम तौर पर निवृति के नज़दीक, जब अंतिम पोस्टिंग का समय आता है तो कर्मचारी से उसकी पसंद पूछ ली जाती है।</p> <p>पसंद की जगह अंतिम पोस्टिंग इसलिये दी जाती है ताकि कर्मचारी अपने अंतिम दो वर्षों में अपनी पसंद की जगह घर, मकान इत्यादि बनवा ले और निवृत होकर स्थायी हो जाये, व आराम से रह सके। परंतु उस अधिकारी ने अपनी अंतिम पोस्टिंग मांग ली ICF चेन्नई में। ICF यानि Integral Coach Factory, यानि रेल के आधुनिक डिब्बे बनाने वाला कारखाना।</p> <p>चेयरमैन-रेलवे बोर्ड, ने उनसे पूछा कि क्या उद्देश्य है आपका?</p> <p>वो इंजीनियर बोले, "अपने देश की, अपनी स्वयं की "सेमी हाई स्पीड ट्रेन" बनाने का उद्देश्य है"</p> <p>ये वो समय था, जब देश मे 180 किलोमीटर प्रति घंटा दौड़ने वाले Spanish Talgo कंपनी के रेल डिब्बों का परीक्षण चल रहा था। परीक्षण सफल था, पर वो कंपनी 10 डिब्बों के लगभग 250 करोड़ रुपए मांग रही थी, और "तकनीक स्थानांतरण का करार" भी नहीं कर रही थी।</p> <p>ऐसे में उस इंजीनियर ने ये संकल्प लिया कि वो अपने ही देश में स्वदेशी तकनीक से Talgo से बेहतर ट्रेन बना लेगा और वो भी उसके आधे से भी कम दाम में।</p> <p>चेयरमैन, रेलवे बोर्ड ने पूछा, "क्या तुम्हें विश्वास है, तुम ये कर लोगे ?"</p> <script async src="//pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js"></script><ins style="text-align: center; display: block" class="adsbygoogle" data-ad-slot="6192152968" data-ad-client="ca-pub-2403663660424248" data-ad-format="fluid" data-ad-layout="in-article"></ins><script>
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</script> <p>पूरे आत्मविश्वास से उत्तर मिला, "यस, सर"</p> <p>"कितना पैसा चाहिये अनुसंधान के लिये?"</p> <p>"सिर्फ 100 करोड़ रुपए, सर"</p> <p>रेलवे ने ये मांग स्वीकार कर उनको ICF में पोस्टिंग और 100 करोड़ रुपए दे दिया।</p> <p>उस अधिकारी ने आनन-फानन में रेलवे इंजीनियर्स की एक टोली खड़ी की, औऱ सभी काम मे जुट गए।</p> <p>दो वर्षों के अथक परिश्रम से जो उत्कृष्ठ उत्पाद तैयार हुआ, उसे हम "ट्रेन 18" यानि "वन्दे भारत" रेक के नाम से जानते हैं। और जानते हैं कि 16 डब्बों की इस "ट्रेन 18" की लागत कितनी आई? केवल 97 करोड़, जबकि Talgo सिर्फ 10 डिब्बों के 250 करोड़ माँग रही थी।</p> <p>"ट्रेन 18" भारतीय रेल के गौरवशाली इतिहास का सबसे उतकृष्ठ हीरा है।</p> <p>इसकी विशेषता ये है कि इसे खींचने के लिए किसी इंजन की आवश्यकता नहीं पड़ती, क्यों कि इसका हर डिब्बा स्वयं में ही सेल्फ प्रोपेल्ड है, यानि हर डिब्बे में मोटर लगी हुई है।</p> <p>दो वर्षों में तैयार हुए पहले रैक को "वन्दे भारत" ट्रेन के नाम से वाराणसी-दिल्ली के बीच पहली बार चलाया गया। रेलवे कर्मचारियों की उस टोली को इस शानदार उपलब्धि के लिये क्या पारितोषिक मिलना चाहिये था ?</p> <p>उन अधिकारी को पद्म सम्मान ? या पद्मश्री ?</p> <p>15 फरवरी 2019 को जब प्रधानमंत्री मोदी जी ने "ट्रेन 18" के पहले रैक को "वन्दे भारत" के रूप में वाराणसी के लिये हरी झंडी दिखाकर रवाना किया, तो उस भव्य कार्यक्रम में "ट्रेन 18" के निर्माताओं को बुलाया ही नहीं जा सका।</p> <p>उल्टे पूरी टोली के ऊपर नये CRB को विजिलेंस की जांच बैठानी पड़ी। क्योंकि भारत में बैठे कुछ देशद्रोही इस उपलब्धि को, नये भारत की नई तस्वीर को, पचा ही नहीं पा रहे थे और लगातार आरोप लगाते रहे कि "ट्रेन 18" के कलपुर्जे खरीदने में "टेंडर प्रक्रिया" का पालन नहीं हुआ। ICF ने अगले दो वर्ष, यानी 2020 तक "ट्रेन 18" के 100 रैक बनाने की महत्वाकांक्षी योजना बनाई थी। पर नई ट्रेन बनाना तो दूर, पूरी टोली को ही विजिलेंस जांच में उलझाकर तहस-नहस कर दिया।</p> <script async src="//pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js"></script><ins style="text-align: center; display: block" class="adsbygoogle" data-ad-slot="6192152968" data-ad-client="ca-pub-2403663660424248" data-ad-format="fluid" data-ad-layout="in-article"></ins><script>
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</script> <p>सभी अधिकारियों, इंजीनियरों को ICF से दूर, अलग अलग स्थान पर भेजना पड़ गया। देशद्रोही बिचौलिए और शक्तियां अपने उद्देश्यों मे काफी हद तक सफल हो गए, केवल अच्छे लोगों की चुप्पी के कारण, सदैव देशभक्तों का बलिदान ही होना पडा है।</p> <p>2-3 वर्षभर वो जांच चली, पर कुछ नहीं निकला। कोई भ्रष्टाचार था ही नहीं, सो निकलता क्या!</p> <p>कहां तो दो वर्षों में 100 रैक बनने वाले थे, वहां एक भी न बना। जांच के नाम पर तीन वर्ष नष्ट हुए, सो अलग।</p> <p>अंततः 2022 में उसी ICF ने, उसी तकनीक से 4 रैक बनाये, जिन्हें अब दिल्ली-ऊना, बंगलुरू-मैसूर और मुम्बई-अहमदाबाद रुट पर चलाया जा रहा है। </p> <p>उन होनहार इंजीनियर का नाम है- "सुधांशु मनी" </p> <p>LinkedIn profile <a href="https://www.linkedin.com/in/s-mani-train18/?originalSubdomain=in">https://www.linkedin.com/in/s-mani-train18/?originalSubdomain=in</a></p> <p>Website: <a href="https://manisudhanshu.com/">https://manisudhanshu.com/</a></p> <p><a href="https://drive.google.com/uc?id=1aDeyyWVUIQkDMHEH_YhvAGP3Yirmn5ev"><img style="background-image: none; border-right-width: 0px; padding-left: 0px; padding-right: 0px; display: inline; border-top-width: 0px; border-bottom-width: 0px; border-left-width: 0px; padding-top: 0px" title="clip_image004" border="0" alt="clip_image004" src="https://drive.google.com/uc?id=1nPo9MgwKD-SP29_77Wn0DFdX4Bffjtyf" width="605" height="317" /></a></p> <p>2018 में ही निवृत्त हो गये।</p> <p>इस देश में "ट्रेन 18" जैसी विलक्षण उपलब्धि के लिये उनके हाथ केवल इतनी उपलब्धि आई कि आज भी हम में से अधिकांश ने आज से पहले उनका नाम तक नहीं सुना था।</p> <p>पिछले दिनों जब "वन्दे भारत" एक भैंस से टकरा गई और उसका अगला हिस्सा क्षतिग्रस्त हो गया तो जिनके द्वारा कभी सुई तक नहीं बनाई गई, उन देशद्रोहियों द्वारा ट्रेन के डिज़ाइन की अनर्गल आलोचना होने लगी, तब सुधांशु सर की पीडा छलक गई, और उन्होंने एक लेख लिखकर उसके डिजाइन की खूबियां बताईं।</p> <p>ऐसे होते हैं हमारे देश के भीतर बैठे हुए भीतरी गद्दार, जो कि देश के विकास को बिलकुल पचा नहीं पाते हैं, और वे प्रत्येक अच्छे काम में मीन-मेख निकालकर उस काम को ही रुकवाने के प्रयास में लग जाते हैं। जिससे देश का विकास बाधित हो सके।</p> <p>ये हमारे देश के भीतरी गद्दार, विदेशी गद्दारों व दुश्मनों से अधिक खतरनाकहैं। हम सभी को मिलकर इनको रोकना होगा। आगे आप स्वयं समझदार है कि इनको रोकना कैसे है। </p> <p>भारत माता की जय!</p> <script async src="//pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js"></script><ins style="text-align: center; display: block" class="adsbygoogle" data-ad-slot="6192152968" data-ad-client="ca-pub-2403663660424248" data-ad-format="fluid" data-ad-layout="in-article"></ins><script>
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</script>अनिरुद्ध शर्माhttp://www.blogger.com/profile/13002310161641964453noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2968743675234023117.post-14913032805014037662023-08-01T09:02:00.000+05:302023-08-01T09:02:00.159+05:30सकारात्मक सोच<p>एक आदमी एक सेठ की दुकान पर नौकरी करता था। वह बेहद ईमानदारी और लगन से अपना काम करता था। उसके काम से सेठ बहुत प्रसन्न था और सेठ द्वारा मिलने वाली तनख्वाह से उस आदमी का गुज़ारा आराम से हो जाता था। </p> <p>ऐसे ही दिन गुज़र रहे थे। एक दिन वह आदमी बिना बताए काम पर नहीं आया। उसके न आने से सेठ का काम रूक गया॥ </p> <p> तब सेठ ने सोचा कि यह आदमी इतने दिनों से ईमानदारी से काम कर रहा है। मैंने कबसे इसकी तन्ख्वाह नहीं बढ़ाई। इतने पैसों में इसका गुज़ारा कैसे होता होगा? <br />सेठ ने सोचा कि अगर इस आदमी की तन्ख्वाह बढ़ा दी जाए, तो यह और मेहनत और लगन से काम करेगा। उसने उसी महीने से ही उस आदमी की तनख्वाह बढ़ा दी। </p> <p>उस आदमी को जब एक तारीख को बढ़े हुए पैसे मिले, तो वह हैरान रह गया।</p> <script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js"></script><!-- Post_inside --><ins class="adsbygoogle" style="display: block;" data-full-width-responsive="true" data-ad-format="auto" data-ad-slot="1289243902" data-ad-client="ca-pub-2403663660424248"></ins><script>
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</script> <p>लेकिन वह बोला कुछ नहीं और चुपचाप पैसे रख लिये...</p> <p>धीरे-धीरे बात आई गई हो गयी। कुछ महीनों बाद वह आदमी फिर फिर कुछ दिन ग़ैर हाज़िर हो गया। </p> <p>यह देखकर सेठ को बहुत गुस्सा आया। वह सोचने लगा- कैसा कृतघ्न आदमी है। मैंने इसकी तनख्वाह बढ़ाई, पर न तो इसने धन्यवाद  दिया और न ही अपने काम की जिम्मेदारी समझी।</p> <p>इसकी तन्खाह बढ़ाने का क्या फायदा हुआ? यह नहीं सुधरेगा! और उसी दिन सेठ ने बढ़ी हुई तनख्वाह वापस लेने का फैसला कर लिया। </p> <p>अगली 1 तारीख को उस आदमी को फिर से वही पुरानी तनख्वाह दी गयी। लेकिन हैरानी यह कि इस बार भी वह आदमी चुप रहा।</p> <p>उसने सेठ से ज़रा भी शिकायत नहीं की। यह देख कर सेठ से रहा न गया और वह पूछ बैठा- बड़े अजीब आदमी हो भाई-,"जब मैंने तुम्हारे ग़ैरहाज़िर होने के बाद पहले तुम्हारी तन्ख्वाह बढ़ा कर दी, तब भी तुम कुछ नहीं बोले और आज जब मैंने तुम्हारी ग़ैर हाज़री पर तन्ख्वाह फिर से कम कर के दी, तुम फिर भी खामोश रहे। इसकी क्या वजह है? </p> <script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js"></script><!-- Post_inside --><ins class="adsbygoogle" style="display: block;" data-full-width-responsive="true" data-ad-format="auto" data-ad-slot="1289243902" data-ad-client="ca-pub-2403663660424248"></ins><script>
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</script> <p>उस आदमी ने जवाब दिया-,"जब मैं पहली बार ग़ैर हाज़िर हुआ था तो मेरे घर एक बच्चा पैदा हुआ था। उस वक्त आपने जब मेरी तन्ख्वाह बढ़ा कर दी, तो मैंने सोचा कि ईश्वर ने उस बच्चे के पोषण का हिस्सा भेजा है।</p> <p>इसलिए मैं ज्यादा खुश नहीं हुआ। ...</p> <p>जिस दिन मैं दोबारा ग़ैर हाजिर हुआ, उस दिन मेरी माता जी का निधन हो गया था। आपने उसके बाद मेरी तन्ख्वाह कम कर दी, तो मैंने यह मान लिया कि मेरी माँ अपने हिस्से का अपने साथ ले गयीं.... </p> <p>फिर मैं इस तनख्वाह की ख़ातिर क्यों परेशान होऊँ? </p> <p>यह सुनकर सेठ को अपनी गलती का एहसास हुआ। उसने उस आदमी को गले से लगा लिया और अपने व्यवहार के लिए क्षमा मांगी। </p> <p>सार :- <br />मैं कर रहा हूं, मैं कमा रहा हूं, मैं खिला रहा हूं। ध्यान रहे भाग्य से अधिक कभी किसी को मिल नहीं सकता और भाग्य कोई किसी का छीन नहीं सकता। </p> <p>सबका मालिक एक है <br /></p> <script async src="//pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js"></script><!-- Ani-Lab link unit --><ins class="adsbygoogle" style="display: block;" data-ad-format="link" data-ad-slot="2823923401" data-ad-client="ca-pub-2403663660424248"></ins><script>
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</script>अनिरुद्ध शर्माhttp://www.blogger.com/profile/13002310161641964453noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2968743675234023117.post-20622242299171308842023-07-25T09:34:00.000+05:302023-07-25T09:34:00.139+05:30ये जगत बड़ा अनूठा है।<p>हर कोई  दूसरे से मांग रहा है जो उस के पास है ही नही।</p> <p>हम दूसरे के पास प्रेम मांगते है , बिना सोचे समझे की उसके पास प्रेम है की नही ...? और उसके पास जब प्रेम नही मिलता तो हमे लगता है कि उसने धोखा दिया...</p> <p>हम किसि से सहानुभूति मांगते है, </p> <p>किसी का ध्यान ,अटेंशन मांगते हैं...</p> <p>किसी का वक्त मांगते हैं।</p> <p>उसके पास अपने लिए तो वक्त है नहीं , वो आप को वक्त क्या देगा....? <br />जो दूसरे के पास है ही नही , वो हम उससे मांगते हैं और दुखी होते हैं।</p> <p>और दूसरे की भी मजबूरी है कि उसके पास वो भाव, प्रेम और श्रद्धा है  ही नही वो कहा से दे...? जिसकी हम मांग कर रहे है।</p> <p>हम मांगते रहते है। गिड़गिड़ाते रहते है। एहसास दिलाते रहते हैं और दूसरे को कुछ समझ ही नही आता।</p> <p>क्यू है ये  परवशता ? क्यों जताना पर्वशता...? हमे धिक्कार है ....इस परवशता पर...</p> <p>तमाम उम्र इंसान सहारे ढूंढता है।</p> <p>यही से ही शरीर में रोगों का जन्म होता है।</p> <p>क्या हम बिना अपेक्षा से और सहजता से नही जी सकते...?  </p> <p>जीवन जीने की कला सीखे और सदैव याद रखें कि पहला सुख निरोगी काया</p> <script async src="//pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js"></script><!-- Ani-Lab link unit --><ins class="adsbygoogle" style="display: block;" data-ad-format="link" data-ad-slot="2823923401" data-ad-client="ca-pub-2403663660424248"></ins><script>
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</script>अनिरुद्ध शर्माhttp://www.blogger.com/profile/13002310161641964453noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2968743675234023117.post-88279674012596544892023-07-19T21:23:00.001+05:302023-07-19T21:23:43.145+05:30बेटियों के लिए<p>यह पोस्ट उन तमाम लड़कियों के लिए है जिनको ये शिकायत है कि हमको ससुराल में बेटी नही समझा जाता।</p> <p>पहले ये जानना जरूरी है कि बेटी थी तब क्या रोल था आपका घर में..आप आराम से उठती थी देर तक सोती रहती थी। <br />खाना चाय नाश्ता सब मम्मी बना देती थी बाकी काम मेड करती थी कभी कभार आप घर के काम मे हाथ बंटाती थी।</p> <p>अब बताएं कि आप की मम्मी भी यदि यही सोचती की मैं भी ससुराल में बेटी की तरह रहूंगी तो क्या आपको ये आराम मिलता शायद नहीं,शादी से पहले मां बाप की जिम्मेदारी है इसलिए वो आपकी गलतियों को नज़र अंदाज़ करते है।</p> <p>शादी के बाद आपके ऊपर भी आपकी माँ की तरह जिम्मेदारी आती है तो आपको भी वो करना होगा जो माँ घर मे करती थी।</p> <p>हम लोग अपनी शादी से पहले की ज़िंदगी खूब ऐश के साथ काटकर आते है। अब जब हम पर जिम्मेदारी आयी तो घबराना क्यों,क्यों शिकायत करना ।</p> <p>अब मुझे बताएं यदि आप पीहर आएं आपकी भाभी देर तक सोती रहे। मम्मी रसोई में काम करें तो क्या आप उस भाभी की तारीफ करेंगी ?? कभी नहीं..  आप मां से कहेंगी की आप क्यो रसोई में खटती है भाभी को करने दिया करो। कौन लड़की ऐसी है जो भाभी से ये कहे कि भाभी आप खूब आराम करो मम्मी सब कर लेगी??</p> <script async src="//pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js"></script><ins style="text-align: center; display: block" class="adsbygoogle" data-ad-slot="6192152968" data-ad-client="ca-pub-2403663660424248" data-ad-format="fluid" data-ad-layout="in-article"></ins><script>
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</script> <p>अब एक बात जो वो कहती है कि हम सिर्फ सास ससुर पति और अपने बच्चों का करेंगे दूसरों का नही... <br />मतलब देवर ननद जेठ ...अब इसका मुझे जवाब दें कि आपके भाई की शादी पहले हो गयी और भाभी आ गयी वो सब का खाना बनाए और आपका नही तो क्या आप या आपके मां बाप को अच्छा लगेगा.... ,बिल्कुल नहीं...इसलिए यदि जो आप चाह रही है वो आपकी भाभी आपके साथ करे तो बुरा नही लगना चाहिए।</p> <p>आपको अपनी ननद उनके बच्चों का आना अगर बुरा लगता है तो आप भी सोच लीजिये आप की भाभी भी आपके आने से खुश नही होगी।</p> <p>कभी सोचा है आपने अपनी मां को घर मे पीहर की तरह महसूस करवाया है??यदि नही तो आप कैसे उम्मीद करती है कि आपको महसूस हो। </p> <p>क्या माँ ने कभी ये शिकायत की कि मुझे जल्दी उठना पड़ता था,काम करना पड़ता था,शायद कभी नहीं वो तो सर दर्द होने पर भी आप लोगो के लिए खाना बनाती थी।......हर जगह का अपना महत्व है ।इसलिए दोनों को महत्व दीजिये।</p> <p>जो लड़कियां समझती है, उन्हें एडजस्ट करना आता है और  वो तारीफ के काबिल हैं</p> <p> </p> <script async src="//pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js"></script><ins style="text-align: center; display: block" class="adsbygoogle" data-ad-slot="6192152968" data-ad-client="ca-pub-2403663660424248" data-ad-format="fluid" data-ad-layout="in-article"></ins><script>
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</script> <p><strong>सर्वे भवंतु सुखी नाम <br />सर्वे संतु निर्मयाम <br />सर्वे भद्राणि पश्यंतु <br />मां कस्च दुख भाग भव्य</strong></p>अनिरुद्ध शर्माhttp://www.blogger.com/profile/13002310161641964453noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2968743675234023117.post-59257560828139562382023-07-18T09:33:00.000+05:302023-07-18T09:33:00.147+05:30मैं मैं हूँ(Ego)<p>अभी एक साल भी नहीं हुआ था दोनों की शादी को कि दोनों में झगड़ा हो गया किसी बात पर ... <br />जरा सी अनबन हुईं और दोनो के बीच बातचीत बंद हो गई ...वैसे दोनो बराबर पढ़ें - लिखे , दोनो अपनी नौकरी में व्यस्त तो दोनों का इगो भी बराबर ... <br />वहीं पहले मैं क्यों बोलूं....मे कयो झुकूं....</p> <p>तीन दिन हो गए थे पर दोनों के बीच बातचीत बिल्कुल बंद थी ... <br />कल सुधा ने ब्रेकफास्ट में पोहे बनाये, पोहे में मिर्च बहुत ज्यादा हो गई। सुधा ने चखा नही था, तो उसे पता भी नहीं चला...और मोहन ने भी नाराजगी की वजह से बिना कुछ कहे पूरा नाश्ता किया पर एक शब्द नही बोला, लेकिन अधिक तीखे की वजह से सर्दी में भी वह पसीने से भीग गया  बाद मे जब सुधा ने ब्रेकफास्ट किया तब उसे अपनी गलती का अहसास हुआ....</p> <p>एक बार उसे लगा कि वह मोहन से सॉरी बोलना चाहिए..  लेकिन फिर उसे अपनी फ्रैंड की सीख याद आ गई कि अगर तुम पहले झुकी तो फिर हमेशा तुम्हें ही झुकना पड़ेगा और वह चुप रह गई हालांकि उसे अंदर ही अंदर अपराध बोध हो रहा था</p> <p>अगले दिन सन्डे था तो मोहन की नींद देर से खुली घड़ी देखी तो नौ बज गए थे , उसने सुधा की साइड देखा, वह अभी तक सो रही थी , वह तो रोज जल्दी उठकर योगा करती है.... मोहन ने सोचा.. <br />खैर... मुझे क्या.... <script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js"></script><!-- Post_inside --><ins class="adsbygoogle" style="display: block;" data-full-width-responsive="true" data-ad-format="auto" data-ad-slot="1289243902" data-ad-client="ca-pub-2403663660424248"></ins><script>
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</script> <br />  उसने किचन में जाकर अपने लिए नींबू पानी बनाया और न्यूजपेपर लेकर बैठ गया</p> <p>दस बजे तक जब सुधा नही जगी तब मोहन को चिंता हुई ... <br />कुछ हिचकते हुए वह उसके पास गया... <br />सुधा ... दस बज गए हैं ... <br />अब तो जागो...' कोई जवाब नही.... दो - तीन बार बुलाने पर भी जब कोई जवाब नहीं मिला तब वह परेशान हो गया। उसने सुधा का ब्लैंकेट हटा कर उसके चेहरे पर थपथपाया..... उसे तो बुखार था ।</p> <p>वह जल्दी से अदरक की चाय बना लाया। सुधा को अपने हाथों का सहारा देकर बिठाया और पीठ के पीछे तकिया लगा दिया ..... <br />उसे चाय दी।</p> <p>'कोई दिक्कत तो नही कप पकड़ने में , क्या मैं पिला दूं" ... <br />मोहन के कहने का अंदाज में कितना प्यार था यह सुधा फीवर में भी महसूस कर रही थी...</p> <p>'मैं पी लूंगी ...' उसने कहा.. <br />मोहन भी बेड पर ही बैठ कर चाय पीने लगा। <br />'सुधा, तुम आराम करो, मैं मेडिसिन लेकर आता हूं।'</p> <p>सुधा चाय पीते-पीते भी उसे ही देख रही थी ..... <br />कितना परेशान लग रहा था , कितनी परवाह है मोहन को मेरी , कहीं से भी नही लग रहा कि तीन दिन से हम एक- दूसरे से बात भी नही कर रहे और मैं इसे छोड़कर मायके जाने की सोच रही थी... कितनी गलत थी मै...</p> <script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js"></script><!-- Post_inside --><ins class="adsbygoogle" style="display: block;" data-full-width-responsive="true" data-ad-format="auto" data-ad-slot="1289243902" data-ad-client="ca-pub-2403663660424248"></ins><script>
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</script> <p>'क्या हुआ .....मोहन ने उसे परेशान देख पूछा , सिर में ज्यादा दर्द तो नही हो रहा .... <br />आओ मै सहला दूं... <br /> ' नही मोहन... <br />मैं ठीक हूं ... एक बात पूछूं... <br /> 'हां बिल्कुल...' मोहन ने सहज भाव से कहा <br />इतने दिन से मैं तुमसे बात भी नही कर रही थी और उस दिन ब्रेकफास्ट में मिर्च भी बहुत ज्यादा थी तुम बहुत परेशान हुए फिर भी तुम मेरी इतनी केयर कर रहे हो ... <br />मेरे लिए इतना परेशान हो रहे हो, क्यो...</p> <p>'हां ....परेशान तो मैं बहुत हूं , तुम्हारी तबियत जो ठीक नही है, और रही मेरे - तुम्हारे झगड़े की बात ... तो जब जिंदगी भर साथ रहना ही है तो कभी -कभी बहस भी होगी , झगड़े भी होंगे ,रूठना -मनाना भी होगा...दो बर्तन जहां हो वहां कुछ खटखट तो होगी ही... <br />समझी कि नही मेरी जीवनसंगिनी.... <br /> 'सही कह रहे हो...' कहते हुए <br />सुधा मोहन के गले लग गई...</p> <p>सुधा ने मन ही मन अपने- आप से वादा किया.. अब कभी मेरे और मोहन के बीच में इगो नही आने दूंगी...</p> <p>पति-पत्नी में झगड़ा ना हो यह कैसे संभव है? <br />एक ने कही दूजे ने मानी नानक कहे दोनों ज्ञानी</p> <script async src="//pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js"></script><!-- Ani-Lab link unit --><ins class="adsbygoogle" style="display: block;" data-ad-format="link" data-ad-slot="2823923401" data-ad-client="ca-pub-2403663660424248"></ins><script>
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</script>अनिरुद्ध शर्माhttp://www.blogger.com/profile/13002310161641964453noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2968743675234023117.post-24849855008309164702023-07-11T08:51:00.000+05:302023-07-11T08:51:00.137+05:30विचार<p>एक चीज़ जो रोज घट रही है, वो है आयु। <br />एक चीज़ जो रोज बढ़ रही है, वो है तृष्णा। <br />एक चीज़ जो सदा एक सी रहती है, <br />वो है “विधि का विधान।" <br />जिसका मन मस्त है.. उसके पास समस्त है..!!   </p> <p>कुछ तकलीफें हमारा इम्तिहान लेने नहीं, बल्कि हमारे साथ जुड़े लोगों की पहचान करवाने आती हैं। </p> <p>जिंदगी को गमले के पौध की तरह मत बनाईये जो थोड़ी सी धूप लगने पर मुरझा जाये...., <br />जिंदगी को जंगल के पेड़ की तरह बनाइये जो हर परिस्तिथि में मस्ती से झूमता रहे..!!</p> <p>तीर्थों में सर्वश्रेष्ठ तीर्थ आपका हृदय है। यह जितना निर्मल और निष्पाप होगा, सारे तीर्थ उतने ही आपके आस पास होंगे।</p> <p>हमेशा याद रखें 'पाँव' भले ही फिसल जाए पर 'जुबान' को कभी मत फिसलने दें, यही जिंदगी की कामयाबी का राज है।</p> <script async src="//pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js"></script><!-- Ani-Lab link unit --><ins class="adsbygoogle" style="display: block;" data-ad-format="link" data-ad-slot="2823923401" data-ad-client="ca-pub-2403663660424248"></ins><script>
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</script>अनिरुद्ध शर्माhttp://www.blogger.com/profile/13002310161641964453noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2968743675234023117.post-89199666888714198272023-07-04T08:46:00.000+05:302023-07-04T08:46:00.140+05:30श्रेष्ठ दान<p>शहर में मंदिर बनने का काम जोर शोर से चल रहा था.. लाखों की तादाद में लोग मंदिर समिति को दान दे रहे थे जिससे मंदिर निर्माण में कोई रुकावट न आ सके।</p> <p>रिक्शा चलाने वाला राजु तीन दिन से रोज दान देने की इच्छा से जाता था और सोचता कि मैं भी कुछ दान करूँ और ईश्वर मेरी सेवा स्वीकार करें.. पर वहाँ लोगों को हजारों और लाखों रूपये की दान पर्ची कटवाते देख उसे हिचक होती और वह लौट जाता.. </p> <p>आज मंदिर के लिए दान देने का आखिरी दिन था.. क्योंकि मंदिर तैयार हो चुका था और कल मूर्तियों की स्थापना होनी थी.. राजु से नहीं रहा गया, उसने अपनी जेब से पचास रुपये निकाले और बोला, " भैया, यह पैसे ईश्वर की सेवा में लग जाते तो.. </p> <p>" मंदिर समिति के कर्मचारी ने पचास रुपये देखकर मुंह बिचकाते हुए कहा कि पचास रुपये में क्या होगा। 500 रूपये से कम हम धन को स्वीकार नहीं करते।</p> <p>फिर भी राजु के बार बार कहने पर उसने वह पचास रुपये अपने कुर्ते की जेब में डाल लिए ओर इतने छोटे से दान के लिए पर्ची काटने से मना कर दिया.. </p> <script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js"></script><!-- Post_inside --><ins class="adsbygoogle" style="display: block;" data-full-width-responsive="true" data-ad-format="auto" data-ad-slot="1289243902" data-ad-client="ca-pub-2403663660424248"></ins><script>
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</script> <p>राजु संतोष की सांस लेता हुआ घर चला गया.. <br />दूसरे दिन मंदिर में काफी भीड़ थी.. ज्यादा धन दान करने वालों के नाम अलग से लिखे हुए थे जिन्हें मूर्ति स्थापना के बाद सम्मानित किया जाना था..</p> <p>मंत्रोच्चारण के साथ मूर्तियां लाल वस्त्रों से ढकी हुई परिसर में लाई गयीं.. पर यह क्या, भगवान की मूर्ति का मुकुट इतना ढीला था कि मूर्ति का चेहरा पूरा मुकुट से ढका हुआ था.. लोग परेशान थे कि नया मुकुट बनने में तो बहुत समय लगेगा और बिना मुकुट मूर्ति की स्थापना नहीं हो सकती.. तभी कारीगर को सलाह लेने के लिए बुलाया गया.. कारीगर बोला कि मुकुट में एक छोटी सी टेक लगते ही मुकुट अपनी जगह स्थिर हो जायेगा और मूर्ति का चेहरा सही से दिखने लगेगा..और उसने टेक की कीमत पचास रुपये बतायी..</p> <p>मंदिर समिति के कर्मचारी ने अपने कुर्ते की जेब से राजु द्वारा दान किये गये पचास रुपये निकाल कर कारीगर को दिये और कुछ देर में ही टेक लगते ही मुकुट स्थिर हो गया और मूर्ति स्थापना कर सभी ने ईश्वर के दर्शन किये.. ऐसा लग रहा था मानों ईश्वर ने राजु का दान स्वीकार करने के बाद ही सभी भक्तजनों को अपने मुखमंडल के दर्शन कराये.. </p> <p>सार :- <br />समर्पण के भाव से किया गया छोटा सा दान, करोड़ों के दान से कहीं श्रेष्ठ है..</p> <script async src="//pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js"></script><!-- Ani-Lab link unit --><ins class="adsbygoogle" style="display: block;" data-ad-format="link" data-ad-slot="2823923401" data-ad-client="ca-pub-2403663660424248"></ins><script>
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</script>अनिरुद्ध शर्माhttp://www.blogger.com/profile/13002310161641964453noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2968743675234023117.post-1405649002798647312023-06-27T09:33:00.000+05:302023-06-27T09:33:00.138+05:30परिस्थिति<p> <br />जब कोई बड़ी परिस्थिति आती है तो सभी लोग मिलकर सेवा करते हैं। <br />कोई तन (शरीर) से सेवा करता है, कोई धन से सेवा करता है, और कोई मन से सेवा करता है। अर्थात दुआओं से सेवा करता है। दुआएं असंभव को संभव कर देती हैं।  हमें  सभी की दुआओं से भी सेवा करनी है। <br /> हमें अपने घर को मंदिर बनाने के लिए मंदिर जैसे वाइब्रेशन फैलाने हैं। <br />भोजन को प्रसाद बनाकर स्वयं और सभी को खिलाना है। भोजन बनाते समय किचन में परमात्मा की याद के गाने सुनते सुनते प्रसाद बनाना है। <br />उस प्रसाद को खाने के समय पर मोबाइल या टीवी देखकर नहीं खाना है। <br />परमात्मा का शुक्रिया करके व परमात्मा को याद करके उस प्रसाद को खाने से परमात्मा की शक्तियां खाने में भरेंगी, जिससे हम शक्तिशाली बन जाएंगे।</p> <p>सुबह सुबह उठते ही परमात्मा को याद करेंगे। <br />जैसे ही हमारी नींद खुली, आंख नहीं खुली तो हमारा पहला संकल्प परमात्मा का शुक्रिया करना है। सुबह-सुबह परमात्मा का शुक्रिया होना चाहिए। अपने मन को सिखाना है। <br />जैसे हम अपने बच्चों को सिखाते हैं कि सुबह-सुबह बच्चों को बड़ों का आशीर्वाद लेना है, नमस्कार करना हैं। <br />वैसे ही हम सभी को सुबह-सुबह परमात्मा का आशीर्वाद लेना है। <br />पहला परमात्मा का शुक्रिया करना है। <br />दूसरा अपने मन और शरीर का शुक्रिया करना है। <br />तीसरा सभी लोगों का शुक्रिया करना है। <br />चौथा प्रकृति का शुक्रिया करना है।</p> <p></p> <script async src="//pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js"></script><!-- Ani-Lab link unit --><ins class="adsbygoogle" style="display: block;" data-ad-format="link" data-ad-slot="2823923401" data-ad-client="ca-pub-2403663660424248"></ins><script>
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</script>अनिरुद्ध शर्माhttp://www.blogger.com/profile/13002310161641964453noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2968743675234023117.post-27129674495256221102023-06-20T09:32:00.000+05:302023-06-20T09:32:00.141+05:30भगवान कहाँ हैं<p>एक  आदमी हमेशा  की  तरह  अपने   नाई  की  दूकान  पर  बाल  कटवाने  गया .   बाल  कटाते  वक़्त  अक्सर  देश-दुनिया   की  बातें  हुआ करती थीं  ….आज  भी  वे  सिनेमा , राजनीति ,  और  खेल जगत ,  इत्यादि  के  बारे  में  बात  कर  रहे  थे  कि  अचानक   भगवान्  के  अस्तित्व  को  लेकर  बात  होने  लगी .</p> <p>नाई  ने  कहा , “ देखिये भैया ,    मैं  भगवान्  के  अस्तित्व  में  यकीन  नहीं  रखता .”</p> <p>“ तुम  ऐसा  क्यों  कहते  हो ?”, आदमी  ने  पूछा .</p> <p>“आप  ही  बताइए  कि  अगर भगवान्  होते  तो  क्या  इतने  लोग  बीमार  होते ?इतने  बच्चे  अनाथ  होते ? अगर  भगवान्  होते  तो  किसी  को  कोई  दर्द  कोई  तकलीफ  नहीं  होती ”, नाई  ने  बोलना  जारी  रखा , “ मैं  ऐसे  भगवान  के  बारे  में  नहीं  सोच  सकता  जो  इन  सब  चीजों  को  होने  दे . आप ही बताइए कहाँ है भगवान ?”</p> <script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js"></script><!-- Post_inside --><ins class="adsbygoogle" style="display: block;" data-full-width-responsive="true" data-ad-format="auto" data-ad-slot="1289243902" data-ad-client="ca-pub-2403663660424248"></ins><script>
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</script> <p>आदमी  एक  क्षण  के  लिए  रुका  , कुछ  सोचा , पर  बहस  बढे  ना  इसलिए  चुप  ही  रहा .</p> <p>नाई  ने  अपना  काम  ख़तम  किया  और  आदमी  कुछ सोचते हुए  दुकान  से  बाहर  निकला और कुछ दूर जाकर खड़ा हो गया. . कुछ देर इंतज़ार करने के बाद उसे  एक  लम्बी  दाढ़ी – मूछ  वाला  अधेड़  व्यक्ति  उस तरफ आता दिखाई  पड़ा , उसे  देखकर  लगता  था  मानो  वो  कितने  दिनों  से  नहाया-धोया ना   हो .</p> <p>आदमी  तुरंत  नाई  कि  दुकान  में  वापस  घुस  गया  और  बोला , “ जानते  हो इस दुनिया में नाई नहीं होते !”</p> <p>“भला  कैसे  नहीं  होते  हैं ?” , नाई  ने  सवाल  किया , “ मैं  साक्षात  तुम्हारे  सामने  हूँ!! ”</p> <p>“नहीं ” आदमी  ने  कहा , “ वो  नहीं  होते  हैं  वरना  किसी  की  भी  लम्बी  दाढ़ी – मूछ  नहीं  होती  पर  वो देखो सामने उस आदमी की कितनी लम्बी दाढ़ी-मूछ है !!”</p> <p>“ अरे नहीं भाईसाहब नाई होते हैं लेकिन  बहुत से लोग  हमारे  पास  नहीं  आते .” नाई   बोला</p> <script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js"></script><!-- Post_inside --><ins class="adsbygoogle" style="display: block;" data-full-width-responsive="true" data-ad-format="auto" data-ad-slot="1289243902" data-ad-client="ca-pub-2403663660424248"></ins><script>
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</script> <p>“बिलकुल  सही ” आदमी  ने  नाई  को  रोकते  हुए  कहा ,”  यही  तो  बात  है , भगवान भी  होते हैं पर लोग उनके पास जाते नही हैं, फिर कैसे कह सकते हैं कि भगवान होते नहीं हैं ।</p> <p>नाई बोला,"जितने भी लोग मंदिर में माथा टेकने जाते हैं तो क्या वह बीमार नहीं होते उनको कष्ट पीड़ा सब कुछ नहीं होती है। कहां है भगवान?</p> <p>आदमी बोला,"क्या तुमने कभी अपनी अंतरात्मा की आवाज सुनी है क्या तुमने महसूस किया है कि वक्त पर कभी मेरी जरूरत पूरी हो गई जैसे किसी ने कोई मेरी मदद की हो।</p> <p>नाई बोला हां जब मैं मन में शांति में बैठता हूं तो अपनी अंतरात्मा की आवाज सुन सकता हूं और कभी कभी ऐसा महसूस किया है इस वक्त पर किसी ने मेरी मदद कर दी तो आदमी बोला बस यही भगवान है विश्वास रखो बस अपने कर्म श्रेष्ठ रखो मदद भी मिलती है और अंतरात्मा से आवाज भी मिलती है।</p> <p>सार :-</p> <p>मेरे विश्वास में है भगवान, मेरी अंतरात्मा में है भगवान, जब मदद मिले तो समझो बस यही है भगवान। <br /></p> <script async src="//pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js"></script><!-- Ani-Lab link unit --><ins class="adsbygoogle" style="display: block;" data-ad-format="link" data-ad-slot="2823923401" data-ad-client="ca-pub-2403663660424248"></ins><script>
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</script>अनिरुद्ध शर्माhttp://www.blogger.com/profile/13002310161641964453noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-2968743675234023117.post-11072551781287136462023-06-13T10:40:00.000+05:302023-06-13T10:40:00.133+05:30वेश्या द्वारा ज्ञान<p>विवेकानंद राजस्थान के एक खेतरी के महाराजा के मेहमान थे। अमरीका जाने के पहले।</p> <p>अब विवेकानंद का स्वागत कैसे करें? <br />महाराजा और क्या करता, उसने देश की सबसे बड़ी जो खयातिनाम वेश्या थी, उसको बुलावा भेजा।  वेश्या का नाच रखा गया। </p> <p>विवेकानंद को आखिरी घड़ी इस बात का पता चला।</p> <p>सब साज बैठ गए, वेश्या नाचने को तत्पर है, दरबार भर गया,  विवेकानंद को बुलाया गया कि अब आप आएं, अब उन्हें पता चला कि एक वेश्या का नृत्य हो रहा है उनके स्वागत में!</p> <p>विवेकानंद के  मन को चोट लगी कि यह कोई बात हुई! संन्यासी के स्वागत में वेश्या!उन्होंने इस स्वागत स्मारहो में आने से इंकार कर दिया। </p> <p>साधारण भारतीय संन्यासी की धारणा यही है! उन्होंने अपने को अपमानित अनुभव किया। </p> <p>स्वामी विवेकानंद के दर्शनों के अभिलाषा लिए वह वेश्या बड़ी तैयार होकर आयी थी। एक महान संन्यासी का स्वागत जो करना था। बहुत से पद याद करके आयी थी-- कबीर के, मीरा के, नरसी_मेहता के।</p> <script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js"></script><!-- Post_inside --><ins class="adsbygoogle" style="display: block;" data-full-width-responsive="true" data-ad-format="auto" data-ad-slot="1289243902" data-ad-client="ca-pub-2403663660424248"></ins><script>
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</script> <p>बहुत दुखी हुई कि संन्यासी नहीं आएंगे। मगर उसने एक गीत नरसी मेहता का गाया--बहुत भाव से गाया, खूब रोकर गाया, आंखों में झर-झर आंसू बहे और गाया। उस भजन की कड़ियां विवेकानंद के कमरे तक आने लगी और विवेकानंद के हृदय पर ऐसी चोट पड़ने लगी जैसे सागर की लहरें किनारे से टकराएं, पछाड़ खाएं।</p> <p>नरसी मेहता का कोई एक भजन था - <br />"एक लोहे का टुकड़ा तो पूजागृह में रखते हैं, एक लोहे का टुकड़ा कसाई के घर में होता है, लेकिन पारस पत्थर को तो कोई भेद नहीं होता। चाहे कसाई के घर का लोहा ले आओ। जिससे जानवरों को काटता रहा हो, और चाहे पूजागृह का लोहा ले आओ, जिससे पूजा होती रही हो, पारस पत्थर तो दोनों को छूकर सोना ही कर देता है।"</p> <p>यह गीत के बोल जब उन्होंने सुने तो यह बात उन्हें बहुत चोट कर गयी, घाव कर गयी। यह विवेकानंद के जीवन में बहुत बड़ी क्रांति की घटना थी।</p> <p>उन्होंने मन ही मन विचार किया कि , मेरे गुरु, रामकृष्ण जो नहीं कर सके, उसे एक वेश्या ने  कर दिया।</p> <script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js"></script><!-- Post_inside --><ins class="adsbygoogle" style="display: block;" data-full-width-responsive="true" data-ad-format="auto" data-ad-slot="1289243902" data-ad-client="ca-pub-2403663660424248"></ins><script>
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</script> <p>विवेकानंद अपने को रोक न सके, आँखों से आंसू गिरने लगे-- <br />उन्होंने विचार किया कि अगर तुम पारस पत्थर हो, तो यह भेद कैसा? पारस पत्थर को क्या वेश्या दिखाई पड़ेगी या सती दिखाई पड़ेगी?</p> <p>पारस पत्थर को क्या फर्क पड़ता है-- कौन सती, कौन वेश्या! लोहा कहां से आता है, इससे क्या अंतर पड़ता है, पारस पत्थर के तो स्पर्श मात्र से सभी लोहे सोना हो जाते हैं। <br />वह रोक न सके अपने को। पहुंच गए दरबार में। सम्राट भी चौंका। लोग भी चौंके कि पहले मना किया, अब आ गए! और आए तो आँखों से आंसू बह रहे थे। </p> <script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js"></script><!-- Post_inside --><ins class="adsbygoogle" style="display: block;" data-full-width-responsive="true" data-ad-format="auto" data-ad-slot="1289243902" data-ad-client="ca-pub-2403663660424248"></ins><script>
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</script> <p>स्वामी विवेकानंद ने कहा, मुझे क्षमा करना देवी, मुझसे भूल हो गयी। </p> <p>स्वामी विवेकानंद के दर्शन करने पर वैश्या ने हाथ जोड़कर उन्हें प्रणाम किया।</p> <p>सार : <br />कोई कितना भी बुरा क्यों ना हो, अगर हृदय की गहराइयों से झांक कर देखें तो वह भी प्रेम का प्यासा होता है।</p> <p>ॐ नमः शिवाय, शिवजी सदा सहाय</p> <script async src="//pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js"></script><!-- Ani-Lab link unit --><ins class="adsbygoogle" style="display: block;" data-ad-format="link" data-ad-slot="2823923401" data-ad-client="ca-pub-2403663660424248"></ins><script>
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</script>अनिरुद्ध शर्माhttp://www.blogger.com/profile/13002310161641964453noreply@blogger.com0